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अब देश में नई तकनीक के द्वारा बिना ईंट,सीमेंट के बनेंगे बेहद सस्ते और आलीशान घर IIT मद्रास ने की नई खोज

 

 

 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT मद्रास) ने एक अनूठी तकनीक का उपयोग करके बहुत कम लागत पर टिकाऊ, मजबूत कंक्रीट के घर विकसित किए हैं आईआईटी मद्रास ने कहा कि उसने 6 लाख रुपये से भी कम कीमत में 500 वर्ग फुट क्षेत्रफल वाला दो कमरे का घर बनाया है यह घर सबसे खास है क्योंकि इसके निर्माण में ईंट, सीमेंट, रेत और स्टील जैसी सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया गया है जिप्सम वेस्ट फाइबर ग्लास हाउस IIT मद्रास के निदेशक भास्कर राममूर्ति ने कहा कि ग्लास फाइबर बनाने के लिए हर साल उर्वरक संयंत्रों से लाखों टन जिप्सम मिलाया जाता है।

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उन्होंने कहा कि प्रीकास्ट प्रबलित जिप्सम पैनल से बने घर बनाने में कम समय लगता है और लागत भी कम आती है देखने के लिए ये घर भी मजबूत होते हैं और सीमेंट या ईंटों से बने घरों की तरह होते हैं इस घर को बनाने में उपयोग किए जाने वाले प्रबलित जिप्सम पैनल पहले से ही घर के आकार के अनुसार तैयार किए जाते हैं।

ईंट-सीमेंट बनाने की तुलना में 30% कम समय

प्रीकास्ट जिप्सम पैनल साइट पर असेंबल किए जाते हैं। ये घर ईंट-सीमेंट के घरों की तुलना में 30% कम समय में बन जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग करके आईआईटी मद्रास ने एक पूरी इमारत बनाई है जो खुली है। प्रोफेसर राममूर्ति ने कहा कि इन पैनलों को बनाने में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के कारण किसी सामग्री की जरूरत नहीं पड़ती।

इन पैनलों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि इन्हें दीवारों और छत बनाने के लिए आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है इसके अलावा, ये घर भूकंपरोधी और पर्यावरण के अनुकूल हैं प्रोफेसर देवदास मेनन ने कहा कि उर्वरक कारखानों में चार मिलियन टन से अधिक जिप्सम कचरा है। जिससे जिप्सम कचरे की आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं होगी।

जिप्सम से बने घर पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते

कंक्रीट की दीवारों में ज़्यादा गरम होने की समस्या होती है वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, एक किलोग्राम कंक्रीट से 900 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड पर्यावरण में उत्सर्जित होता है वहीं, जिप्सम पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है जिप्सम पैनल हल्के और पुनर्चक्रण योग्य भी होते हैं आईआईटी मद्रास के निदेशक भास्कर राममूर्ति ने कहा कि प्रौद्योगिकी न्यूनतम लागत पर घर बनाकर उन लोगों को बड़ा लाभ दे सकती है जिनके सिर पर छत नहीं है।

इस तकनीक से केंद्र सरकार हर परिवार को पक्का घर मुहैया करा सकती है प्रो मेनन ने कहा कि आईआईटी मद्रास पिछले 10 साल से इस पर काम कर रहा है अब इसे व्यापक रूप से इस्तेमाल करने में बहुत कम समय लगेगा।

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