मध्यप्रदेश

एक ऐसा प्रदेश जिसका महत्व देश में हुआ करता था ,आज एक जिला बनकर रह गया,

नर्मदा नदी के नाम रेवा से रीवा का विस्तार हुआ। इतना प्रसिद्ध प्रदेश आज जिला बन कर रह गया।आज भी अपनी पहचान के लिऐ संघर्ष कर रहा रीवा जो कभी अपनी पहचान बिना बताए ही, प्रसिद्ध हुआ करता था, पर कहते है ना हीरा वो अनमोल रत्न है जिसके बारे में सोचा नही जा सकता वो जहां रहेगा अपनी कला बिखेरता रहेगा,ठीक वैसा ही रीवा धीरे धीरे अपनी उन्ही काबिलियतो को आगे लाकर धीरे धीरे अपनी उन्ही सुंदरता पर छा रहा, आपको रीवा की उन्ही गरिमा ,कला, सुंदरता, इतिहास से अवगत करा रहे ताकि आपके जहन में रीवा के प्रति बढ़ावा मिलता रहे, और आपके कंधो में एक जिम्मेदारी बनी रहे,रीवा विंध्य प्रदेश की मांग बार बार उठाई जा रही ,पर शायद नेताओ के अलावा जनता इस पर अम्ल नहीं कर पा रही इसका मुख्यकारण है ,ज्यादातर लोग रीवा के इतिहास से परिचित नहीं है,

रीवा शहर मध्य प्रदेश प्रांत के विंध्य पठार का एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस,बीहर.,बिछिया नदी एवं उसकी सहायता नदियों द्वारा सिंचित है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में सतना एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिले स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल २,५०९ वर्ग मील है। यह पहले एक बड़ी बघेल वंश की रियासत थी। यहाँ के निवासियों में गोंड एवं कोल ब्राह्मण विभिन्न क्षत्रिय वैश्य जाति के लोग भी शामिल हैं जो पहाड़ी भागों के साथ-साथ मुख्य नगर में रहते हैं। जिले में जंगलों की अधिकता है, जिनसे लाख, लकड़ी एवं जंगली पशु प्राप्त होते हैं। रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ की नस्ल पाई गई हैं। जिले की प्रमुख उपज धान है। जिले के ताला नामक जंगल में बांधवगढ़ का ऐतिहासिक किला है।

जब गुजरात से सोलंकी राजपूत मध्य प्रदेश आयें तो इनके साथ कुछ परिहार राजपूत एवं कुछ मुस्लिम भी आये परन्तु कुछ समय पश्चत सोलांकी राजा व्याघ्र देव ने सोलांकी से बघेल तथा परिहार से वरग्राही (श्रेष्ठता को ग्रहण करने वाला) वंश की स्थापना की। बघेल तथा वरग्राही परिहार आज बड़ी संख्या में संपूर्ण विंध्य मैं पाए जाते हैं जो प्रारंभ से एक दूसरे के अति विश्वस्त हैं। प्राचीन इतिहास के अनुसार रीवा राज्य के वर्ग्राही परिहारो ने रीवा राज्य के लिए अनेक युद्ध लड़े जिनमें नएकहाई युद्ध, बुंदेलखंडी युद्ध, लाहौर युद्ध, चुनार घाटी मिर्जापुर युद्ध, कोरिया युद्ध, मैहर युद्ध, कृपालपुर युद्ध, प्रमुख हैं।

बघेल वंश की स्थापना व्याघ्र देव ने की जिसके कारण इन्हें व्याघ्र देव वंशज भी कहा जाता है। चूँकि इन दोनों वंश की स्थापना होने के बाद इन दोनों राजपूतो का ज्यादा विस्तार नही हो पाया जिसके कारण इन वंशो के बारे में ज्यादा जानकरी प्राप्त नही हुई। इन्हें अग्निकुल का वंशज माना जाता है।

भूतपूर्व रीवा रियासत की स्थापना लगभग 1400 ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी। मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया और 1597 ई, में इसे भूतपूर्व रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन 1912 ई. में यहाँ के स्थानीय शासक ने ब्रिटिश सत्ता से समझौता कर अपनी सम्प्रभुता अंग्रेज़ों को सौंप दी। यह शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की राजधानी भी रहा।यहाँ विश्व का सबसे पहला सफ़ेद शेर मोहन पाया गया। जिसकी मृत्यु हो चुकी है।

रीवा जिले के निकट 13 किलोमीटर (निपानिया-तमरा मार्ग) महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफ़ारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर का निर्माण किया गया है जहाँ सफ़ेद शेरों को संरक्षण दिया जा रहा है।

रीवा जिले में बघेली एक प्रमुख भाषा है। हाल ही में यहाँ पर कृष्णा राज कपूर ऑडीटोरियम का निर्माण कराया गया है ।

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