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चने की फसल में लगने वाले कीटों की पहचान कर इन कीटनाशकों का करें प्रयोग, बढ़ जायेगी पैदावार

 

 

Gram farming: दोस्तों चने की बुवाई का समय बीत चुका है ऐसे में किस का चना अब तैयार होने की स्थिति में है इस समय सबसे बड़ी चिंता किसने की चने के पौधे को लेकर है। क्योंकि वर्तमान में चने के फूल आना शुरू हो गए हैं ऐसे में जंक और कीड़े भी लगने लगे है। अगर सही समय पर यह उपाय नहीं किए गए तो आपकी फसल बर्बाद हो सकती है आपको हजार रुपए का घाटा लग सकता है। अगर आप अपनी फसल बचाना चाहते हैं तो 15 से ₹50 तक इन कीटनाशकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे में आपकी फसल सुरक्षित रहेगी और ज्यादा पैदावार भी होगी। आपको बता दें किसानों को डीएपी यूरिया के अलावा अन्य  कीटनाशकों की जानकारी भी नहीं है। ऐसे में हम कुछ सरकारी वेबसाइट के माध्यम से जानकारी हासिल करके आपके समक्ष लाए हैं

चने की फसल में लगने वाला कीट

चने की फसल पर लगने वाले कीटों में फली भेदक सबसे खतरनाक कीट है। इस कीट क प्रकोप से चने की उत्पादकता को 20-30 प्रतिषत की हानि होती है। भीषण प्रकोप की अवस्था में चने की 70-80 प्रतिषत तक की क्षति होती है।

क्या होती है इनकी पहचान

चना फलीभेदक के अंडे लगभग गोल, पीले रंग के मोती की तरह एक-एक करके पत्तियों पर बिखरे रहते हैं

अंडों से 5-6 दिन में नन्हीं-सी सूड़ी निकलती है जो कोमल पत्तियों को खुरच-खुरच कर खाती है।

सूड़ी 5-6 बार अपनी केंचुल उतारती है और धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। जैसे-जैसे सूड़ी बड़ी होती जाती है, यह फली में छेद करके अपना मुंह अंदर घुसाकर सारा का सारा दाना चट कर जाती है।

ये सूड़ी पीले, नारंगी, गुलाबी, भूरे या काले रंग की होती है। इसकी पीठ पर विषेषकर हल्के और गहरे रंग की धारियाँ होती हैं।

इन कीड़ों पर कब करें प्रयोग

इसका प्रयोग कीट का प्रकोप बढ़ने से पहले चेतावनी के रूप में करते हैं। जब नर कीटों की संख्या प्रति रात्रि प्रति टैªप 4-5 तक पहुँचने लगे तो समझना चाहिए कि अब कीट नियंत्रण जरूरी। इसमें उपलब्ध रसायन (सेप्टा) की ओर कीट आकर्षित होते है। और विशेष रूप से बनी कीप (फनल) में फिसलकर नीचे लगी पाॅलीथीन में एकत्र हो जाते है।

सस्य क्रियाओं द्वारा नियंत्रण 1. गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करने से इन कीटों की सूड़ी के कोषित मर जाते है। 2. फसल की समय से बुआई करनी चाहिए

इन कीटनाशको का करें प्रयोग

विभिन्न कीटनाशी रसायनों को कटुआ इल्ली/ फलीभेदक इल्ली को नियंत्रित करने के लिए संस्तुत किया गया है । जिनमें से

क्लोरोपायीरफास (2 मि.लि प्रति लिटर प#2368;) + या इन्डोक्साकार्व 14.5 एस.सी. 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर

या इमामेक्टिन बेन्जोइट की 200 ग्राम दवा प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।

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