यूं तो रीवा जिला अपनी कई खासियत लेकर देश विदेश तक में जाना जाता है इसी तर्ज पर रीवा जिले के हनुमना तहसील के अंतर्गत ग्राम बरही में कई वर्षों से लगातार गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है।
लोग यहां खुद गन्ने की खेती करते हैं और गुड़ को बनाते हैं। इनके द्वारा बनाए गए गुड़ रीवा जिला में माना जाना है। पुराने लोग बरही के गुड़ की खूब सराहना करते हैं क्योंकि यहां बिना मिलावट और असली गुड़ बनाया जाता है।
जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों की लाइफ स्टाइल में बदलाव आया और आज गुड़ जैसी मिठाइयों को छोड़ स्वास्थ्य पर प्रभाव देने वाली मिठाइयों का सेवन कर रहे हैं। बरही में खाड़, गुड़ और पेटौरा बनाया जाता है और ये केवल गन्ने से ही बनाया जाता है।
बताया जाता है की बरही में लगभग हर घर गुड़ का उत्पाद होता है। और ये परंपरा आज से नही बल्कि कई अरसो से चलती आ रही है। बाजारों से बेहद ही कम दाम में इन गुड़ो की कीमत है।
बरही के गुड़ को लेकर इनका क्या कहना है।
जब मैं छोटा था तब मेरे दादा जी बरही के गुड़ को लाते थे और हम सुबह सुबह गुड़ और रोटी खाते थे। तब आज की मिठाइयां उस समय नही थी पर जब आज मिठाई खाता हूं तो थोड़ी सी माने मुंह मीठा हो जाए ,
पर वही अगर गुड़ मिल जाए तो ना पेट भरता और ना ही मन। मैने बरही के गुड़ की तारीफ पूरे जिले भर में सुनी है जिसके कारण मैं भी कोशिश करता हूं। की यहां के गुड़ अपने घर में रखूं। -पत्रकार अमर द्विवेदी सीधी
भले ही धीरे-धीरे हम अपनी परंपराओं को बुला रहे हैं पर अगर कहीं मौका मिलता है उन परंपराओं में जीने का तो वह सारी चीजें याद आ जया करती है।
धीरे-धीरे बरही का गुड़ अपने अस्तित्व खोता जा रहा है इसका मुख्य कारण है कि लोग अब अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव किए हैं काजू कतली और अन्य तरह की बाजारों की मिठाइयों को अच्छा माना जाता है
पर स्वास्थ्य के हिसाब से वह काफी खराब मानी जाती हैं पर वही आयुर्वेद की माने तो गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत माना गया है अगर इसका सुबह-सुबह सेवन किया जाए तो हमारे स्वास्थ्य में एक अलग असर देखने को मिलता है।
लोगों की दिनचर्या में बदलाव होने के कारण गुड़ जैसे औषधि मिठाई अपने अस्तित्व को खोती जा रही हैं।
कब से बनने लगा बरही में गुड़
लोग बताते हैं की बरही में गुड़ बनाते समय बैल और ग्रामीण साधन का उपयोग किया जाता जाता है पहले गन्ने को निचोड़ के उसका रस इकट्ठा किया जाता था फिर भट्टी में उस रस को पकाया जाता था जैसे खोया बनाया जाता है।
इसके बाद गुड़, खाड़ और पेटौरा बनाया जाता है। लोग बताते है करीब 8-10 दशक से बरही में गुड़ बनाया जाता है । रीवा जिले में बरही गुड़ का राजा माना जाता है।