बीरबल की धरती सफेद बाघों का गढ़ ऐतिहासिक है विंध्य की राजधानी रीवा की कहानी 

बीरबल की धरती सफेद बाघों का गढ़ ऐतिहासिक है विंध्य की राजधानी रीवा की कहानी 

मध्य प्रदेश का रीवा महज एक शहर न होकर अपने आपने आप में ऐतिहासिक धरोहर है. ये अकबर के नवरत्न बीरबल की भूमी होने के साथ ही सफेद बाघों की जन्मभूमी है. आइये जानते हैं यहां की इतिहास और वर्तमान

REWA। विंध्याचल पर्वत श्रेणी की गोद में फैले हुए विंध्य प्रदेश के मध्य भाग में बसा रीवा शहर जो मधुर गान से मुग्ध तथा बादशाह अकबर के नवरत्न बीरबल की जन्मस्थली रहा है. कलकल करती बीहर एवं बिछिया नदी के आंचल में बसा हुआ रीवा शहर बघेल वंश के शासकों की राजधानी के साथ-साथ विंध्य प्रदेश की भी राजधानी रहा है

आज भी रीवा का वर्चस्व मध्य प्रदेश की राजनीति में बराबर का है आइये जानते हैं रीवा का इतिहास और वर्तमान

ऐतिहासिक है सफेद बाघों का गढ़ रीवा  

ऐतिहासिक प्रदेश रीवा विश्व जगत में सफेद बाघों की धरती के रूप में भी जाना जाता रहा है. रीवा शहर का नाम रेवा नदी के नाम पर पड़ा जो कि नर्मदा नदी का पौराणिक नाम कहलाता है. पुरातन काल से ही यह एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग रहा है. जो कि कौशाबी, प्रयाग, बनारस, पाटलिपुत्र, इत्यादि को पश्चिमी और दक्षिणी भारत को जोड़ता रहा है. बघेल वंश के पहले अन्य शासकों के शासनकाल जैसे गुप्तकाल कल्चुरि वंश, चन्देल एवं प्रतिहार का भी नाम संजोये है

रीवा फैक्ट फाइल

रीवा सफेद शेरों की भूमि के नाम से जाना जाता है

इसे तानसेन की धरती भी कहा जाता है

यही के राजा रामचंद के दरबार में तानसेन थे

1956 के पूर्व यह विंध्य प्रदेश की राजधानी थी

इसका पूर्व में नाम भथा था

रीवा रियासत की स्थापना लगभग 1400 ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी

अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया

1597 ई. में इसे रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया

रीवा के बघेल साम्राज्य किले का इतिहास 400 साल पुराना है

यहां महाराजा व्याग्रदेव से लेकर वर्तमान महाराजा पुष्पराज सिंह तक 35 लोगों का शासन रहा

1617 ई. रीवा बना  था राजधानी 

इतिहास के मुताबिक 1617 ई. में महाराजा विक्रमादित्य सिंह ने रीवा को अपने राज्य की राजधानी बनाई थी. वर्तमान में रीवा का राजमहल विश्व विख्यात है. देश-विदेश के पर्यटक आज भी बड़े शौक से इस किले को देखने जाते हैं. लेकिन, जब रीवा को राजधानी बनाई गई थी, तब महल अधूरा था. विक्रमादित्य सिंह ने उसे पूरा करने का विचार किया.

बघेल शासकों का लंबा दौर 

विक्रमादित्य के बाद भाव सिंह रीवा के महाराज बने. इन्होंने विशाल महल के अंदर महामृत्युंजय मंदिर बनवाया. इसके बाद रीवा के महाराजों की श्रृंखला में विश्वनाथ सिंह, रघुराज सिंह, गुलाब सिंह, मार्तंड सिंह और पुष्पराज सिंह का नाम आता है. पुष्पराज सिंह वर्तमान में रीवा के महाराज हैं. उनका राज्याभिषेक 2002 ई. में हुआ

पुष्पराज सिंह से पहले उनके पिता महाराज मार्तंड सिंह ने रीवा के लिए बहुत कुछ किया. वे तीन बार सांसद भी रह चुके हैं. मार्तंड सिंह ही वे सख्श हैं, जिन्होंने पहली बार सफेद बाघ की खोज की थी

इन्होंने वहां के जंगलों की सुरक्षा को लेकर काफी काम किया. इनके बाद पुष्पराज सिंह को रीवा की राजगद्दी सौंपी गई

ऐसा है आधुनिक रीवा 

रीवा संभागीय मुख्यालय होने के कारण इस क्षेत्र के एक प्रमुख नगर के रूप मे जाना जाता रहा है तथा संभागीय मुख्यालय के साथ ही इस क्षेत्र का एक प्रमुख ऐतिहासिक नगर है

रीवा नगर पालिक निगम सन 1950 के पूर्व नगर पालिका के रूप में गठित हुई थी

जनवरी 1981 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा नगर पालिक निगम का दर्जा प्रदान किया गया

वर्तमान मे रीवा शहर में कुल 45 वार्ड है, जिसमे 6 वार्ड अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है

बघेल खंड का है केंद्र 

बता दें रीवा अपने आप में बघेल खंड का केंद्र है. यहां से क्षेत्र की राजनीति और विकास के रास्ते गुजरते हैं. शहडोल संभाग बनने से पहले इसमें रीवा, सीधी, सतना, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया यानी कुल 7 जिले होते. लेकिन, शहडोल के विभाजन के बाज इसमें 4 जिले बजे हैं 

Exit mobile version