प्रमोशन में आरक्षण पर फिर घमासान: कर्मचारी संगठनों में टकराव, सरकार की नीति सवालों के घेरे में
मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सरकारी ड्राफ्ट पर सपाक्स और अजाक्स आमने-सामने, कोर्ट के आदेशों की अनदेखी और कर्मचारी हितों पर फिर से सवाल।

मध्यप्रदेश में पदोन्नति को लेकर आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। राज्य सरकार द्वारा तैयार किए गए नए ड्राफ्ट को लेकर कर्मचारियों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्गों के संगठन सपाक्स ने सरकार के फार्मूले को पूरी तरह खारिज कर दिया है। वहीं, अजाक्स इस ड्राफ्ट का समर्थन कर रहा है, जिससे दोनों संगठनों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है।
राज्य सरकार ने वर्षों से रुकी पदोन्नतियों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक नया प्रस्ताव तैयार किया है। लेकिन सपाक्स का आरोप है कि यह ड्राफ्ट पक्षपातपूर्ण है और यह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करता है। संगठन का कहना है कि यदि सरकार इसे लागू करती है, तो वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होंगे। इससे एक बार फिर लाखों कर्मचारियों की पदोन्नति अधर में लटक सकती है।
9 साल से लंबित है पदोन्नति
प्रदेश में पिछले करीब नौ वर्षों से पदोन्नतियों पर रोक लगी हुई है। इस दौरान एक लाख से अधिक कर्मचारी बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस जटिलता को दूर करने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार का हालिया ड्राफ्ट नई उलझनें पैदा कर रहा है।
सपाक्स की आपत्ति: सबके लिए समान मौका हो
सपाक्स प्रदेश संयोजक डॉ. पीपी सिंह तोमर ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को खुश करने की कोशिश कर रही है, जबकि अन्य वर्गों के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। उनका कहना है कि प्रमोशन योग्यता और सेवा अवधि के आधार पर होना चाहिए, न कि आरक्षण पर। उन्होंने ड्राफ्ट में प्रस्तावित ‘एक अंक की छूट’ जैसे प्रावधान को भी भेदभावपूर्ण बताया।
अजाक्स की दलील: सामाजिक समावेश जरूरी
वहीं अजाक्स के प्रदेश सचिव गौतम पाटिल का मानना है कि एससी-एसटी वर्ग लंबे समय तक विकास की मुख्यधारा से दूर रहा है। उनके अनुसार, इन वर्गों को पदोन्नति में आरक्षण देकर उन्हें बराबरी का अवसर देना आवश्यक है। सरकार ने उनकी दलीलों पर ध्यान दिया है, जो सकारात्मक संकेत है।
सपाक्स की मांगें
सपाक्स संगठन की प्रमुख मांगें हैं:
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार पदोन्नति की प्रक्रिया हो।
सभी वर्गों के अधिकारियों-कर्मचारियों को समान अवसर मिले।
दक्षता परीक्षण (इफिशिएंसी टेस्ट) को प्रमोशन का आधार बनाया जाए।
पदोन्नति में आरक्षण को लेकर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था एक बार फिर विवादों में है। सरकार का प्रयास भले ही गतिरोध दूर करने का हो, लेकिन उसका नया ड्राफ्ट दोनों संगठनों के बीच खाई को और चौड़ा करता दिख रहा है। यदि जल्द ही सर्वमान्य समाधान नहीं निकाला गया, तो इससे न केवल कर्मचारी वर्ग हतोत्साहित होगा, बल्कि प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ेगा।
अजाक्स (AJAKS) क्या है
पूरा नाम: अखिल भारतीय अनु. जाति / जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ
मुख्य उद्देश्य: अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना।
मुख्य विशेषताएं
यह संगठन SC/ST वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने की वकालत करता है।
पदोन्नति में आरक्षण, सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व को बनाए रखने की मांग करता है।
सरकार की नीतियों में अगर आरक्षित वर्गों के साथ भेदभाव होता है, तो यह उसका विरोध करता है।
सपाक्स (SAPAKS) क्या है?
पूरा नाम: सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ
मुख्य उद्देश्य: सामान्य (General), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा।
मुख्य विशेषताएं:
यह संगठन आरक्षण के विरोध में आवाज उठाता है, खासकर पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ।
योग्यता और सेवा अवधि के आधार पर समान अवसर की मांग करता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों के आधार पर निष्पक्ष नीति की मांग करता है।