राजनीति

मोदी की विदेश नीति पर सवाल: 10 साल, अरबों का खर्च, फिर भी क्यों नाराज़ हैं पड़ोसी?

मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल 10 साल में 70+ विदेशी दौरे, अरबों खर्च – फिर क्यों बिगड़ते जा रहे हैं रिश्ते?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 के बाद से भारत की विदेश नीति में एक नई सक्रियता देखने को मिली। मोदी ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की नीति पर चलते हुए लगभग हर प्रमुख देश का दौरा किया। 2015 से 2025 तक उन्होंने 70 से अधिक देशों की यात्रा की। इन दौरों पर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2,500 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है। लेकिन अब सवाल यह उठ रहे हैं कि इतनी कूटनीतिक मेहनत और निवेश के बाद भी क्यों कई देश भारत से नाराज़ दिखाई दे रहे हैं।

कितना हुआ विदेशी दौरा और कितना हुआ खर्च

2015 से 2023 तक: पीएम मोदी ने 60 से अधिक देशों की आधिकारिक यात्राएं कीं।

2024–25 (अब तक): संयुक्त राष्ट्र और G7 सम्मेलनों सहित 10+ विदेश दौरे हो चुके हैं।

कुल अनुमानित खर्च: ₹2,500 से ₹3,000 करोड़ के बीच।

प्रमुख यात्राएं: अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस, चीन, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, इज़राइल, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश आदि।

फिर क्यों नाराज़ हैं देश

1. चीन के साथ बढ़ता तनाव

डोकलाम से लेकर गलवान तक भारत-चीन संबंधों में तनाव लगातार बढ़ता गया है। कई दौर की बैठकों और सीमा वार्ताओं के बावजूद हालात सामान्य नहीं हो पाए।

2. मालदीव और श्रीलंका से दूरी

जहां एक समय ये देश भारत के करीबी थे, वहीं अब चीन की बढ़ती मौजूदगी के चलते भारत को इन देशों में बैकफुट पर जाना पड़ा।

3. कतर, ईरान और खाड़ी देशों में भी असंतोष

पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान के बाद खाड़ी देशों में नाराजगी खुलकर सामने आई। भारत को सफाई तक देनी पड़ी।

4. नेपाल से बिगड़े संबंध

नेपाल ने अपनी राजनीतिक और भौगोलिक दिशा को भारत से अलग करते हुए चीन की ओर झुकाव दिखाया। कालापानी विवाद ने इस रिश्ते को और चोट पहुंचाई।

विदेश नीति में कहां चूक हुई

वास्तविकता से अधिक प्रचार: भारत की विदेश नीति को ‘इवेंट मैनेजमेंट’ की तरह प्रस्तुत किया गया। फोटो-ऑप और हग डिप्लोमेसी तो दिखी, लेकिन जमीनी स्तर पर सहयोग और रणनीतिक बढ़त नहीं दिखी।

पड़ोसी देशों की उपेक्षा: ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति के बावजूद कई पड़ोसी देश चीन के करीब चले गए।

आंतरिक मुद्दों का असर: भारत में बढ़ते धार्मिक तनाव, मानवाधिकार से जुड़े सवाल और प्रेस की आज़ादी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जताई गई, जिससे भारत की छवि प्रभावित हुई।

संतुलन की कमी: अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने में भारत को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। कई बार भारत की स्थिति भ्रम में रही।

क्या भारत को नुकसान हुआ

रणनीतिक प्रभाव घटा: दक्षिण एशिया में भारत का प्रभाव चीन की तुलना में कमजोर हुआ है।

व्यापारिक साझेदारी में अनिश्चितता: कई बड़े निवेश प्रस्ताव फंसे, और व्यापार घाटा कई देशों के साथ बढ़ा।

विश्व मंच पर छवि को झटका: ‘सबका साथ सबका विकास’ का संदेश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाया।

2015 से 2025 तक नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति को काफी आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया, लेकिन उसके परिणाम मिश्रित रहे। जहां कुछ देशों से संबंध मज़बूत हुए, वहीं कई परंपरागत मित्र देश भारत से दूर हुए। विदेशी दौरों पर खर्च भले ही बड़ी तस्वीर का हिस्सा हो, लेकिन अगर इन दौरों का फायदा भारत को रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर नहीं मिल पाया, तो यह सोचने का विषय जरूर है।

समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button