ईद-उल-अज़हा: मऊगंज में भाईचारे की खुशबू से महका आसमां
मऊगंज में ईद-उल-अज़हा के मौके पर मुस्लिम समाज ने नमाज अदा कर देश-समाज की शांति की दुआ की, पुलिस प्रशासन की निगरानी में भाईचारे और सौहार्द का संदेश फैला

मऊगंज ज़िले ने सोमवार की भोर से ही ईद-उल-अज़हा (बकरीद) के रंग-रौशन से खुद को सराबोर कर लिया। नईगढ़ी, मऊगंज और हनुमना की तमाम मस्जिदों-ईदगाहों में हाफ़िज़ मोहम्मद फ़ैज़ की इमामत में अलसुबह सामूहिक नमाज़ अदा हुई। सिर झुकाकर दुआ माँगते हाथों ने मुल्क की तरक़्क़ी, समाज की सलामती और आपसी मोहब्बत की दुआ माँगी। नमाज़ के बाद गले मिलते ही “ईद मुबारक” की गूंज से फ़िज़ा में अपनापन घुल गया।
बकरीद का इतिहास हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके पुत्र हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुरबानी से जुड़ा है। इसी त्याग की याद में मुस्लिम समाज बकरे की कुर्बानी देकर यह पैग़ाम देता है कि इंसानियत के वास्ते कुछ भी लुटाया जा सकता है। कुर्बानी के गोश्त का एक हिस्सा गरीब-ज़रूरतमंदों तक पहुँचाकर लोग इस दिन सेवा-भाव को प्राथमिकता देते हैं, जबकि बाकी हिस्सा दोस्तों-रिश्तेदारों में बाँट कर ख़ुशियाँ साझा की जाती हैं।
सुरक्षा-व्यवस्था की कमान ज़िले के आला अफ़सरों ने अपने हाथों में रखी। कलेक्टर संजय कुमार जैन और पुलिस अधीक्षक दिलीप कुमार सोनी के निर्देश पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विक्रम सिंह तथा नईगढ़ी, हनुमना, शाहपुर और लौर के थाना प्रभारियों ने मैदान में मौजूद रहकर भाईचारा निभाया। कहीं भी भीड़भाड़ से लेकर ट्रैफ़िक तक का इंतज़ाम ऐसा रहा कि नमाज़ियों को कोई दिक़्क़त न हो।
क़ुरबानी के बाद घर-घर दावत-ए-वालेमा का सिलसिला शुरू हुआ। बच्चों की टोलियाँ नए कपड़ों में इत्र की ख़ुशबू उड़ाती हुई गलियों को रौशन कर रही थीं, तो महिलाओं ने पारंपरिक सीवइयाँ, शिरखुर्मा और बिरयानी का ज़ायका तैयार करके अपनों का दिल जीत लिया। जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों ने भी जगह-जगह पहुंचकर गले मिलकर मुबारकबाद दी; यह दृश्य बताता है कि मऊगंज की मिट्टी में साझी संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी हैं।
मऊगंज का यह पर्व सिर्फ़ एक धर्म‐विशेष का उत्सव नहीं, बल्कि इंसानी एकता का जश्न है। यहाँ हर साल की तरह इस बार भी मज़हब की दीवारें ढहती दिखीं और दिलों के दरवाज़े खुले रहे। नज़ारा बस यही कहता रहा—जब इरादे नेक हों और दिलों में जगह हो, तो कुर्बानी में भी ख़ुशहाली की मिठास घुल जाती है।