छतरपुर के एक रिटायर्ड शिक्षक ने अपने प्रेम को अमर बनाने के लिए जो कदम उठाया, वह हर किसी के दिल को छू रहा है। यह कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। जहां एक ओर मुगल शासक शाहजहां ने मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था, वहीं छतरपुर के बीपी चंसोरिया ने अपनी पत्नी की याद में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया। इस मंदिर को उन्होंने नाम दिया – प्रेम प्रतीक मंदिर।
प्रेम की मिसाल: शिक्षक ने पत्नी की याद में बनवाया मंदिर
छतरपुर के बीपी चंसोरिया ने अपनी पत्नी की याद में जो किया, वह सच्चे प्रेम की मिसाल बन गया है। जैसे शाहजहां ने मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया, वैसे ही इस शिक्षक ने जीवनभर की जमा पूंजी से एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे उन्होंने प्रेम प्रतीक मंदिर का नाम दिया।
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पत्नी की अधूरी इच्छा को बनाया जीवन का लक्ष्य
बीपी चंसोरिया की पत्नी वंदना चंसोरिया ने अपने जीवनकाल में चित्रकूट में एक मंदिर और आश्रम बनवाने की इच्छा जताई थी। दुर्भाग्यवश उनका निधन हो गया और यह सपना अधूरा रह गया। पत्नी की इस अंतिम इच्छा को चंसोरिया जी ने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
करोड़ों की लागत से बना भव्य राधा-कृष्ण मंदिर
चंसोरिया जी ने छतरपुर के पन्ना रोड स्थित नरसिंह मंदिर परिसर में एक भव्य राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में उन्होंने अपनी संपूर्ण जमा पूंजी लगा दी। यह मंदिर अब दूर-दूर से आए लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
प्रेम प्रतीक मंदिर: लोगों के दिलों में बना खास स्थान
इस मंदिर को “प्रेम प्रतीक मंदिर” नाम दिया गया है, जो अब छतरपुर ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र में प्रेम की मिसाल के रूप में पहचाना जा रहा है। यहाँ आने वाले लोग न सिर्फ दर्शन करते हैं, बल्कि इस प्रेम कहानी से भावुक भी हो जाते हैं।
समाज के लिए एक प्रेरणादायक संदेश
बीपी चंसोरिया की यह कहानी समाज को यह संदेश देती है कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि एक जीवनभर का समर्पण है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता – वह वक्त और हालात से परे होता है।
आज भी गूंजती है एक प्रेम कहानी
चंसोरिया जी की प्रेम कहानी आज हर किसी की जुबां पर है। यह मंदिर उनके प्रेम और समर्पण की जीवित मिसाल बन चुका है। यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जो प्रेम की पवित्रता और उसकी अमरता को दर्शाता है।