राजनीति

Rewa News: रीवा युवराज के सामने रामगरीब जयवर्द्धन का मुकाबला हिरेंद्र से रियासत की सियासत खत्म कर पाएंगे ये 8 उम्मीदवार!

Rewa News: रीवा युवराज के सामने रामगरीब जयवर्द्धन का मुकाबला हिरेंद्र से रियासत की सियासत खत्म कर पाएंगे ये 8 उम्मीदवार!

मध्य प्रदेश की राजनीति में कई राजपरिवारों का दबदबा अब भी कायम है 2023 के चुनाव में कई रियासतों के सियासी वारिस टिकट पाने में कामयाब रहे हैं लेकिन चर्चा राजपरिवार के खिलाफ लड़ने वाले उम्मीदवारों की ज्यादा हो रही है।

सिरमौर से रीवा राजघराने के सियासी वारिस दिव्यराज सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने रामगरीब आदिवासी को मैदान में उतारा है 10वीं तक की पढ़ाई करने वाले रामगरीब आदिवासी की कुल संपत्ति 3 लाख से भी कम की है यह जानकारी उन्होंने अपने पिछले हलफनामे में दी थी।

बीएसपी काडर के रामगरीब रीवा के ही त्योंथर विधानसभा से विधायक रह चुके हैं 2022 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था. साम्यवादियों के गढ़ माने जाने वाले सिरमौर में 2013 से ही रीवा राजपरिवार का कब्जा है।

रामगरीब ही नहीं मध्य प्रदेश में कई ऐसे साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले उम्मीदवार चर्चा में हैं जिन पर रियासत की राजनीति को खत्म करने की जिम्मेदारी है इस स्टोरी में उन्हीं उम्मीदवारों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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चुरहट में अजय सिंह के खिलाफ शरदेंदु तिवारी

चुरहट जागीर के वारिस अजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में होंगे उनके खिलाफ बीजेपी ने शरदेंदु तिवारी को मैदान में उतारा है शरदेंदु 2018 में अजय सिंह को हरा चुके हैं, लेकिन नए समीकरण तैयार कर इस बार अजय मैदान में हैं।

अजय सिंह के पिता अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं उनके दादा शिवबहादुर सिंह भी चुनाव लड़े थे लेकिन जीत नहीं पाए थे चुरहट से अजय सिंह 6 बार विधायक रह चुके हैं अजय सिंह मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं।

इस सीट पर ब्राह्मण ठाकुर और पटेल वोटरों का दबदबा है अजय सिंह की मुश्किलें सपा ने भी बढ़ा दी है. सपा ने यहां से पटेल उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया है।

पवार के देवास किले को ध्वस्त कर पाएंगे चौधरी?

मराठा सम्राज्य के सियासी वारिस गायत्री राजे पवार के खिलाफ देवास सीट पर कांग्रेस ने प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है देवास पर पवार परिवार का पिछले 33 साल से कब्जा है गायत्री के पति तुकोजी राव 1990 में यहां से पहली बार चुनाव जीते थे।

गायत्री राजे खुद भी ग्वालियर के महाडिक परिवार की पुत्री हैं यह परिवार ग्वालियर राजपरिवार के काफी करीब रहा है।

2015 में तुकोजी के निधन के बाद गायत्री ने देवास सीट की कमान संभाली. 2018 में गायत्री ने कांग्रेस के ठाकुर जयसिंह को करीब 28 हजार वोटों से हराया था. गायत्री राजे के लिए इस बार का चुनाव कठिन माना जा रहा है।

लक्ष्मण सिंह के खिलाफ आईआरएस की पत्नी

राघौगढ़ के छोटे सरकार लक्ष्मण सिंह इस बार चाचौड़ा सीट से मैदान में हैं उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया है 2018 में भी लक्ष्मण इसी सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे उन्हें 81 हजार वोट मिले थे उनके निकटतम प्रतिद्वंदी ममता मीणा 72 हजार वोट लाने में कामयाब रही थीं।

बीजेपी ने इस बार ममता का टिकट काट दिया है उनकी जगह पर प्रियंका को मैदान में उतारा है प्रियंका दिल्ली में पदस्थ आईआरएस अधिकारी प्रद्युम्न सिंह मीणा की पत्नी हैं प्रद्युम्न सिंह मूल रूप से चाचौड़ा के ही रहने वाले हैं।

प्रियंका मधुसूदनगढ़ क्षेत्र के वार्ड क्रमांक-18 से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली विधायकी लड़ने के लिए प्रियंका इसी साल बीजेपी में शामिल हुई हैं।

हरसूद में कुंवर शाह के खिलाफ साल्वे मैदान में

1990 से हरसूद भारतीय जनता पार्टी का अभेद्य किला बना हुआ है वजह- मकड़ाई रियासत के सियासी वारिस कुंवर विजय शाह हैं शाह 1990 के बाद अब तक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं वे शिवराज सरकार में मंत्री भी हैं।

मकड़ाई आजादी से पहले मध्य भारत की एक रियासत थी, जिसका विलय फरवरी 1948 में भारत संघ में किया गया मकड़ाई रियासत के 2 लोग अभी राजनीति में सक्रिय हैं विजय के भाई संजय शाह भी 2018 में चुनाव जीते थे

हरसूद सीट पर कांग्रेस ने सुखराम साल्वे को मैदान में उतारा है साल्वे 2018 में भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं साल्वे के दूसरी बार मैदान में उतरने से विजय शाह की मुश्किलें बढ़ गई है 2018 में साल्वे की वजह से ही जीत का मार्जिन 50 हजार से घटकर 18 हजार पर आ गया था।

नागौद राजा के खिलाफ रश्मि सिंह मैदान

नागौद विधानसभा सीट से बीजेपी के नागेंद्र सिंह विधायक हैं. सिंह नागौद राजपरिवार के सियासी वारिस भी हैं. सिंह 1977 में पहली बार इस सीट से विधायक चुने गए थे. वे मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं।

कांग्रेस ने रश्मि सिंह को यहां से मैदान में उतारा है पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल के करीबी यादवेंद्र सिंह भी रेस में शामिल थे 2018 में यादवेंद्र 1234 वोटों से चुनाव हार गए थे रश्मि अभी युवा कांग्रेस से जुड़ी हैं।

2018 में रश्मि नागौद से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी थीं जिसमें उन्हें 25700 वोट मिले थे कांग्रेस ने समीकरण को देखते हुए रश्मि को टिकट दिया है रश्मि सतना के जिला पंचायत उपाध्यक्ष भी रही हैं।

दत्तीगांव के खिलाफ भवंर सिंह मैदान में

दत्तीगांव जागीर और शिवराज सरकार में मंत्री रहे राव राज्यवर्द्धन सिंह बदनावर सीट से फिर मैदान में हैं कांग्रेस ने उनके खिलाफ बीजेपी से आए भंवर सिंह शेखावत को मैदान में उतारा है शेखावत 2013 में दत्तीगांव को चुनाव हरा चुके हैं।

शेखावत की गिनती मालवा के पुराने और जमीनी नेता माने जाते हैं. 2020 में दत्तीगांव के बीजेपी में आने के बाद से ही वे नाराज चल रहे थे. दत्तीगांव सिंधिया के कीरीबी हैं और बगावत के वक्त कर्नाटक गए थे।

दत्तीगांव को राजनीति विरासत में मिली है उनके पिता प्रेम सिंह 1990 में बदनावर सीट से विधायक चुने गए थे राज्यवर्द्धन की राजनीति में एंट्री में 1998 में हुई थी उन्होंने पहला चुनाव निर्दलीय लड़ा था हालांकि, चुनाव में बुरी तरह हार गए थे।

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सिंधिया राजघराने की सीट पर कक्काजू

ग्वालियर राजघराने की सबसे सुरक्षित सीट शिवपुरी से कांग्रेस ने केपी सिंह उर्फ कक्काजू को मैदान में उतारा है शिवपुरी से अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे चुनाव लड़ रही थीं, लेकिन इस बार उन्होंने लड़ने से इनकार कर दिया है।

शिवपुरी से ज्योतिरादित्य के भी चुनाव लड़ने की चर्चा है. 2018 में शिवपुरी सीट से यशोधरा ने कांग्रेस के सिद्धार्थ लाढा को 28 हजार वोटों से हराया था।

केपी सिंह उर्फ कक्काजू की गिनती शिवपुरी के दिग्गज नेताओं में होती है वे जिले के पिछोड़ सीट से लगातार 6 बार विधायक रहे हैं इस बार उन्होंने अपना सीट बदल लिया है कक्काजू के आने से सीट पर लड़ाई काफी मुकाबले की हो गई है।

जयवर्धन के खिलाफ हीरेंद्र सिंह बंटी

राघौगढ़ रियासत के सियासी वारिस और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह के खिलाफ बीजेपी ने हीरेंद्र सिंह बंटी बन्ना को मैदान में उतारा है हीरेंद्र पहले कांग्रेस में ही थे लेकिन 2020 की बगावत के बाद बीजेपी में आ गए।

हीरेंद्र के पिता मूल सिंह दादाभाई राघौगढ़ से विधायक रह चुके हैं और उन्हें दिग्विजय सिंह का राजनीतिक सलाहकार माना जाता था जब जयवर्धन राजनीति में आए तो मूल सिंह ही राघौगढ़ के विधायक थे लेकिन दिग्विजय के कहने पर उन्होंने यह सीट उनके बेटे को दे दी।

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