रीवा

रीवा की योजना समिति या दिखावे का मंच? जनता को विकास नहीं, राजनीति का तमाशा मिला

अब समय आ गया है कि योजना समितियों को सियासी अखाड़ा नहीं, बल्कि जनहित की चौपाल बनाया जाए।

रीवा में हाल ही में आयोजित योजना समिति की बैठक ने यह साबित कर दिया कि इन बैठकों का मूल उद्देश्य, यानी जनता की भलाई, अब कहीं खो चुका है। मंच पर दिखा सत्ता पक्ष का शक्ति प्रदर्शन, कैमरा-फ्रेंडली पोज़ और तालियों की गूंज—लेकिन विकास के असल मुद्दे नदारद रहे।

कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा का फूटा गुस्सा

बैठक में जब केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और राज्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला मंच पर साथ नजर आए, तो कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा ने इसे “टाइमपास मीटिंग” करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह आयोजन महज दिखावे और प्रचार का माध्यम बन गया है, जिसमें जनता की समस्याओं को कोई महत्व नहीं दिया गया।

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विपक्ष की आवाज़ को किया गया नजरअंदाज

विधायक मिश्रा की नाराजगी महज मंच पर बैठे चेहरों से नहीं थी, बल्कि उस प्रक्रिया से थी जिसमें विपक्ष की भागीदारी को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि जिन योजनाओं पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी, वे न एजेंडे में दिखीं, न फैसलों में।

जनता के मुद्दे रह गए पीछे

रीवा की जनता अब राजनीतिक आयोजनों से थक चुकी है। वे सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दों पर ठोस कार्रवाई चाहते हैं। जब समितियों में इन विषयों पर चर्चा नहीं होती, तो जनता को उनसे उम्मीद करना भी व्यर्थ लगने लगता है।

‘योजना’ शब्द की गरिमा हो रही कमज़ोर

‘योजना समिति’ नाम से ही विकास की उम्मीद बंधती है। लेकिन जब यह मंच पॉलिटिक्स, पोजिंग और पब्लिसिटी का अड्डा बन जाए, तो इस नाम की गंभीरता भी प्रभावित होती है। जनता अब यह पूछने लगी है कि क्या इनमें से कोई योजना वास्तव में जमीन पर उतर पाएगी।

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जरूरत है जनहित की चौपाल की, न कि सियासी अखाड़े की

रीवा जैसे क्षेत्र को विकास की सख्त जरूरत है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे मतभेद भुलाकर मिलकर काम करें। विपक्ष की बातों को सुना जाए और सभी मिलकर समाधान निकालें। यही लोकतंत्र की असली पहचान है।

निष्कर्ष जनता तय करेगी असली सेवक कौन

अब समय आ गया है कि योजना समितियों को सियासी रौनक की बजाय जनहित का मंच बनाया जाए। यदि ऐसा नहीं होता, तो जनता तय करेगी कि असली सेवक कौन है और कौन सिर्फ मंच पर चमक रहा है।

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