मध्यप्रदेश

हाईकोर्ट का सख्त फैसला: अब बिना मुख्यमंत्री की अनुमति नहीं होगा कर्मचारियों का अटैचमेंट

MP हाईकोर्ट का कड़ा रुख - कर्मचारियों का अटैचमेंट अब मुख्यमंत्री की मंजूरी के बिना नहीं

सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों और अधिकारियों के अटैचमेंट को लेकर लंबे समय से विवाद चलते आ रहे हैं। अक्सर कर्मचारियों को एक विभाग से दूसरे विभाग में ‘अटैचमेंट’ के नाम पर भेज दिया जाता है, जो असल में एक प्रकार का ट्रांसफर ही होता है। मध्यप्रदेश में वर्तमान में ट्रांसफर पर रोक लगी हुई है, लेकिन इसके बावजूद कुछ अधिकारी कर्मचारियों को कार्यस्थल से हटाकर दूसरे स्थानों पर भेज रहे हैं।

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इसी तरह का एक मामला सामने आया, जहां नर्मदापुरम के तहसील कार्यालय में कार्यरत सहायक ग्रेड-2 मनोज कुमार भारद्वाज को इटारसी के एसडीओ कार्यालय में कार्य विभाजन के नाम पर अटैच कर दिया गया। भारद्वाज ने इस आदेश को अनुचित और दुर्भावनापूर्ण बताते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

उनके वकील अमित चतुर्वेदी ने तर्क दिया कि विभागीय अटैचमेंट वास्तव में एक ट्रांसफर की ही श्रेणी में आता है, और जब राज्य सरकार ने ट्रांसफर पर रोक लगा रखी है, तो बिना मुख्यमंत्री की अनुमति के ऐसा आदेश देना अधिकारों का अतिक्रमण है। उन्होंने यह भी बताया कि सामान्य प्रशासन विभाग ने साफ निर्देश दिए हैं कि किसी भी प्रकार का अटैचमेंट नहीं किया जाए।

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हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कार्य विभाजन या व्यवस्था के नाम पर भी किसी कर्मचारी को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता जब तक कि मुख्यमंत्री की स्वीकृति प्राप्त न हो। अदालत ने 7 मार्च 2025 को जारी अटैचमेंट आदेश को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया।

यह फैसला सरकारी तंत्र में कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि नियमों से ऊपर कोई नहीं, चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों न हो।

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