मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा कि कोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने के लिए बार-बार आवेदन करना सही नहीं है। जमानत रद्द करने के लिए आवेदन केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। जस्टिस संजय द्विवेदी ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी की जमानत रद्द करने की राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणी की।
अनिल साकेत नाम के शख्स पर नाबालिग से रेप का आरोप लगा था, जिसे हाईकोर्ट से जुलाई 2022 में जमानत मिल गई थी। लेकिन राज्य सरकार ने फिर से उसकी जमानत रद्द करने की अर्ज़ी लगा दी। सरकार का कहना था कि रिहा होने के बाद साकेत ने फिर से अपराध किया, जिसके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 323, 294, 506 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उसने सीआरपीसी की धारा 437 का उल्लंघन किया है।
हाईकोर्ट ने सरकार की दलील नहीं मानी जस्टिस द्विवेदी ने कहा कि किसी आरोपी की जमानत रद्द करने का फैसला यूं ही नहीं लिया जाता। अदालत को पिछले अपराध और जमानत दिए जाने के बाद किए गए अपराध दोनों को देखना होगा। यह भी देखना होगा कि क्या जमानत मिलने के बाद किया गया अपराध पहले के अपराध की सजा से बचने के लिए है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाई कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जमानत रद्द करने के लिए पुख्ता सबूत होने चाहिए। ऐसे आवेदनों को निरर्थक नहीं बनाया जाना चाहिए।