गर्मी MP से छीन लेगी दाना-पानी:वैज्ञानिकों की चिंता… क्यों मंडराया खतरा, क्या सूख जाएगी खेतों की नमी?
गर्मी MP से छीन लेगी दाना-पानी:वैज्ञानिकों की चिंता… क्यों मंडराया खतरा, क्या सूख जाएगी खेतों की नमी? जानिए A to Z…
बड़वानी, बुरहानपुर, खरगोन, होशंगाबाद के बाद अब भिंड! इस बार भिंड की तपिश ने वैज्ञानिकों के भी पसीने छुड़ा दिए हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा, तो 2050 में गेहूं का उत्पादन प्रति हेक्टेयर एक टन (10 क्विंटल) तक घट जाएगा। ऐसे में टोटल एरिया में होने वाला गेहूं का उत्पादन 100 लाख टन तक कम होगा, वर्तमान दौर में इसका मूल्य करीब 20 हजार करोड़ रुपए होता है।
इस तरह धान का उत्पादन भी प्रति हेक्टेयर 0.7 टन (7 क्विंटल) तक घटने का अंदेशा है। दोनों मिलाकर मध्यप्रदेश का प्रोडक्शन करीब 125 लाख टन तक गिर सकता है। वर्तमान में प्रदेश में गेहूं की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 3.5 टन और चावल की 3.7 टन है। वैज्ञानिकों की मानें तो 2050 तक MP का तापमान एवरेज एक डिग्री तक बढ़ जाएगा। पढ़िए चिंता में डालने वाली रिपोर्ट…
बीते 120 साल का डेटा एनालिसिस करने पर पता चलता है कि मध्यप्रदेश में इस दौरान औसत तापमान सिर्फ एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। भोपाल के मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह बताते हैं कि मप्र सहित भारत में भी 120 सालों के दौरान 0.9 डिग्री तापमान बढ़ा है जबकि पृथ्वी का एवरेज 1 डिग्री है। सबसे ज्यादा बढ़त 1960-70 के बाद हुई है
दुनिया में रिसर्च भी शुरू…,नमी की कमी से ज्यादा गहराई में बीज डालकर उगाने की कोशिश
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देविंदर शर्मा ने बताया कि ग्लोबल वॉर्मिंग व बढ़ते तापमान का असर सिर्फ किसी राज्य या भारत तक ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में दिखाई दे रहा है। वर्ल्ड की बड़ी मैगजीन ‘नेचर’ ने कुछ दिन पहले ही यह छापा था कि ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक इसे लेकर रिसर्च कर रहे हैं, जिसमें नमी की कमी दूर करने के लिए गेहूं के बीज को जमीन की ज्यादा गहराई में डाल रहे हैं। बीज को 100 से 150 मिलीमीटर गहराई में डालकर उगाने की कोशिश की जा रही है, जबकि अभी 50 मिमी के आसपास ही बीज को जमीन के अंदर डाला जाता है।
एक्सपर्ट शर्मा ने कहा कि विदेश में यह प्रयोग सफल होगा कि नहीं, यह रिसर्च पर निर्भर है, लेकिन भारत में यह कैसे संभव होगा। इसके लिए कैसे बीज तैयार करेंगे, जो डेवलप होने में अधिक समय व गहराई लेगा, क्या वह पनप पाएगा कि नहीं। ऐसी गर्मी में कैसे प्रोडक्शन बेस्ट क्वालिटी और समय पर होगा। हिमाचल जैसे एरिया में इस बार तापमान 38-39 डिग्री पार हो गया है, यह चेंजेंस ही तो हैं, सेब जिसे 25 डिग्री से ज्यादा तापमान चाहिए ही नहीं, कैसे उसका अच्छा प्रोडक्शन होगा। बढ़ते तापमान के कारण बढ़ी इस चिंता के साथ इसके उपाय तलाशने ही होंगे।
विभाग के पास 122 साल का आंकड़ा, बदलते तापमान का एनालिसिस
भोपाल मौसम विभाग में 1900 से वेदर के आंकड़े रखे जा रहे हैं। 122 साल के दौरान अभी तक मौसम, जलवायु, बारिश में जो बदलाव हुए हैं, उनका समय-समय पर विश्लेषण किया जाता रहा है। मौसम वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह ने बताया कि मप्र समेत भारत में पिछले 120 सालों के दौरान 0.9 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा है, इसके दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं।
मप्र समेत भारत में भी 1960 के बाद तापमान में ग्रोथ अचानक दिखाई दी, इंडस्ट्री डेवलपमेंट के साथ शहरीकरण बढ़ा और इससे तापमान भी बढ़ा। इंटरनेशनल संगठन IAPCC (इंटरगर्वनल मेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेंट चेंज) ने आगामी 2050 तक का अनुमान लगाया है कि तापमान औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, लेकिन यह अब उससे ज्यादा 2 तक पार होता दिखाई दे रहा है।