हार न मानना है सफलता का सबसे मजबूत रास्ता : अमन
हार न मानना है सफलता का सबसे मजबूत रास्ता : अमन
सीधी। कवि एवं लेखक अमन द्विवेदी जो अधिकतर लोगो को जागृत करने का काम रहे है। वे अपनी रचनाओ के माध्यम से लोगो मे नवीन उत्साह भरने का कार्य करते है। अब उन्होंने जीवन मे निरंतर परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए एवं हार न मानते हुए लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकते है इस विषय पर अपने लेख के माध्यम से प्रकाश डालने का सशक्त एवं सराहनीय प्रयास किया है।
अपने लेख मे श्री द्विवेदी लिखते है कि जीवन एक परीक्षा की तरह ही हो सकता है किन्तु अन्य परीक्षाओ की तरह उसका को ज्ञात एवं निर्धारित समय नहीं है। जीवन मे कई पर ऐसी स्थितियां निर्मित हो जाती है कि व्यक्ति को लगता है कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है पर ऐसे समय मे हम उस स्थिति से केवल आत्मविश्वास एवं अपने साहस के माध्यम से उबर सकते है। कई बार लोग ऐसे विसंगतियों के बीच कुछ गलत उठा लेते है या उठाने का प्रयास करते है किन्तु ऐसे कदम उठाना कदापि भी कोई उचित समाधान नहीं हो सकता।
जीवन की प्रवाह है
रख तो जरा हौंसला तू
इसी मे मिलनी तुझे
नयी राह है
इन्ही पंक्तियों को रेखांकित करते हुए श्री द्विवेदी कहते है कि हौंसला व आशा रखे नवीन मार्ग आपको अवश्य मिलेगा। किसी भी चीज को बोझ की तरह कदापि न ग्रहण करें उसे अपना शौक बनाए एवं अपने सम्पूर्ण जोश के साथ कोई भी गतिविधि आप करेंगे तो निश्चित ही आपको सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। एक बात यह भी है कि हम सब को पूर्व से कभी भी हार नहीं माननी चाहिए क्योकि यदि हम प्रयत्न नहीं करेंगे तो असफलता निश्चित है पर यदि प्रयास पूरे अंतर्मन की शक्ति के साथ करेंगे तो परिणाम सफलता एवं असफलता के मध्य रहेगा न कि बिन प्रयास की तरह असफलता की तरह निश्चित हो जाएगी इसीलिए हार कभी नहीं मानिए एवं संघर्ष की राह पर अग्रसर होकर जीवन के इस बहु आयामी पथ पर बढ़ते रहिए सफलता मे कुछ अंतर हो सकते है पर प्रयास करने के अनुभव आपको क्रमशः जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूजी प्रतीत होने लगेंगे इसलिए लगे रहिए और जिस किसी भी क्षेत्र मे है आप वहां पथ का विस्तार करिए। लोग अक्सर प्रेरणा ढूढ़ते है तो आपको यह पहचानना होगा कि आपके भीतर ही सबसे बड़ी प्रेरणा छिपी है और उसे स्थाई प्रेरणा कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
माना जीवन मे बाधा का अम्बार है
आना इसे बार बार है
करो प्रयास और बनो मजबूत
असफलता मे नहीं आपकी हार है
इन्ही पंक्तियों के साथ श्री द्विवेदी इस लेख को पूर्ण करते है।