Ceteshwar Pujara retirement: भारतीय टेस्ट क्रिकेट की “नई दीवार” कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने आखिरकार क्रिकेट से संन्यास लेकर अपने शानदार करियर का अध्याय पूरा कर दिया है। उनकी गिनती उन खिलाड़ियों में होती है जिन्होंने अपनी सधी हुई तकनीक, अटूट धैर्य और मजबूत डिफेंस के दम पर टीम इंडिया को कई मुश्किल हालात से बाहर निकाला।
शुरुआती जीवन
चेतेश्वर पुजारा का जन्म 25 जनवरी 1988 को राजकोट (गुजरात) में हुआ था। बचपन से ही उनके पिता अरविंद पुजारा ने उन्हें क्रिकेट की शिक्षा दी। पुजारा की बल्लेबाज़ी शैली पर साफ झलक मिलती है कि उनके अंदर खेल के प्रति अनुशासन और धैर्य कितना गहरा है।
अंतरराष्ट्रीय करियर
पुजारा ने साल 2010 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया। शुरुआत से ही उन्हें राहुल द्रविड़ के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा।
मैच: 100 टेस्ट (लगभग)
रन: 7,000+
सर्वश्रेष्ठ स्कोर: 206* रन
शतक: 19
अर्धशतक: 35 से अधिक
उनकी सबसे यादगार पारियों में 2018-19 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज शामिल है, जहां उन्होंने अपनी धीमी लेकिन निर्णायक बल्लेबाज़ी से भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई।
बल्लेबाज़ी शैली अलग
पुजारा तेज़ रफ्तार क्रिकेट के इस दौर में भी क्लासिकल टेस्ट बल्लेबाज़ी का उदाहरण बने रहे। जहां बाकी खिलाड़ी T20 लीग्स में मशगूल थे, वहीं पुजारा ने लाल गेंद से अपने बल्ले को चमकाते हुए भारत को मजबूती दी।
उनकी खास उपलब्धियां
भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में 7000 से ज्यादा रन
ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी कठिन परिस्थितियों में शतक
घरेलू क्रिकेट और काउंटी क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन
भारत को बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जिताने में अहम भूमिका
नेटवर्थ और आय
चेतेश्वर पुजारा की नेटवर्थ लगभग 70-80 करोड़ रुपये आंकी जाती है। उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा
भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) का कॉन्ट्रैक्ट,
काउंटी क्रिकेट,
ब्रांड एंडोर्समेंट्स से आता रहा।
संन्यास और विरासत
पुजारा का संन्यास भारतीय क्रिकेट के लिए एक भावुक पल है। उन्होंने भले ही रंगीन क्रिकेट में ज्यादा योगदान न दिया हो, लेकिन टेस्ट मैचों में उनका योगदान सदैव याद रखा जाएगा। वे उन क्रिकेटरों में गिने जाएंगे जिन्होंने यह साबित किया कि धैर्य, अनुशासन और लगन से ही टीम को जीत की राह पर ले जाया जा सकता है।
चेतेश्वर पुजारा का सफर सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि उस धैर्य और संघर्ष की कहानी है जिसने उन्हें क्रिकेट का “असली योद्धा” बनाया। आने वाली पीढ़ियां उन्हें हमेशा भारत की “दीवार” के रूप में याद करेंगी।