MP CM Mohan Yadav: मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को लेकर कानूनी लड़ाई लंबे समय से जारी है। 14 जनवरी को यह मामला एक महत्वपूर्ण मोड़ ले सकता है, क्योंकि इस दिन सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी आरक्षण से जुड़ी ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई होगी। राज्य सरकार ने इन याचिकाओं को लेकर कोर्ट में अर्जी दायर की है।
इससे पहले, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विधि विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों के साथ एक अहम बैठक की, जिसमें एडवोकेट जनरल (AG) प्रशांत सिंह भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हुए। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य ओबीसी आरक्षण की कानूनी स्थिति सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई के लिए आवेदन तैयार करना था।
सरकार का पक्ष और रणनीति
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने के पक्ष में है और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से पेश किया जाएगा। सरकार का मानना है कि आरक्षण से संबंधित सभी कानूनी अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए ताकि ओबीसी वर्ग को उनका अधिकार मिल सके।
उन्होंने एडवोकेट जनरल को निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के ताजा फैसले (28 जनवरी) से उत्पन्न भ्रम की स्थिति को स्पष्ट करें और जल्द से जल्द इस मामले का समाधान निकालें।
ओबीसी आरक्षण विवाद की पृष्ठभूमि
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद लंबे समय से चल रहा है। 2019 में राज्य सरकार ने ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया था। इस फैसले को कुछ याचिकाकर्ताओं ने अदालत में चुनौती दी, जिसके चलते मामला कानूनी पेंच में फंस गया।
28 जनवरी 2024 को हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए वह जनहित याचिका निरस्त कर दी, जिसमें सरकार के 27% आरक्षण देने के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसके साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण पर कोई कानूनी बाधा नहीं है और सरकार अपने फैसले को लागू कर सकती है।
विवाद की जड़: 87:13 का फॉर्मूला
2021 में “यूथ फॉर इक्वालिटी” नामक संस्था द्वारा दायर याचिका के आधार पर 4 अगस्त 2023 को हाईकोर्ट ने सरकारी भर्तियों के लिए 87:13 का फॉर्मूला तय किया था। इस आदेश के अनुसार, कुल भर्तियों में 87% पदों पर पुरानी आरक्षण व्यवस्था लागू रखी गई, जबकि 13% ओबीसी आरक्षण वाले पदों को होल्ड कर दिया गया था।
इससे कई सरकारी भर्तियां अटक गईं, जिससे छात्रों और अभ्यर्थियों में नाराजगी बढ़ी। अब, हाईकोर्ट के नवीनतम फैसले के बाद 13% होल्ड किए गए पदों पर भी भर्ती शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है।
पूर्व महाधिवक्ता के अभिमत से उठा विवाद
मध्य प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता द्वारा 26 अगस्त 2021 को दिए गए अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने 2 सितंबर 2021 को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण का लाभ देने की अनुमति दी गई थी।
इस आदेश के तहत नीट पीजी प्रवेश परीक्षा 2019-20, पीएससी मेडिकल ऑफिसर भर्ती 2020 और हाई स्कूल शिक्षक भर्ती जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों में 27% आरक्षण लागू किया गया। लेकिन, 4 अगस्त 2023 को हाईकोर्ट ने इस परिपत्र पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिससे सभी नियुक्तियों में ओबीसी को फिर से सिर्फ 14% आरक्षण मिलने लगा।
अब आगे क्या होगा?
अब जब हाईकोर्ट ने ओबीसी के 27% आरक्षण को लेकर स्पष्ट आदेश दे दिया है, तो सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को मजबूती से रखने की तैयारी कर रही है। यदि सर्वोच्च न्यायालय भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता है, तो मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को पूर्ण 27% आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा।
निष्कर्ष
ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रहा यह कानूनी विवाद अब अपने निर्णायक चरण में है। यदि सरकार सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से पक्ष रखती है और फैसला पक्ष में आता है, तो यह ओबीसी वर्ग के लाखों युवाओं के लिए एक ऐतिहासिक जीत होगी। वहीं, यदि कोई नई कानूनी चुनौती सामने आती है, तो यह मामला और लंबा खिंच सकता है। अब सभी की नजरें 14 जनवरी की सुनवाई पर टिकी हैं, जो ओबीसी आरक्षण के भविष्य का फैसला करेगी।