मऊगंज की मिट्टी में जन्मा एक सामान्य परिवार का युवक—सुखेन्द्र सिंह बन्ना—जिसे क्रिकेट से गहरा लगाव था, शायद ही कभी सोचा होगा कि यही शौक एक दिन उसके जीवन की राह बदल देगा। जब साथी नियमों के खिलाफ बोलने से डरते थे, तब बन्ना जी ने क्रिकेट के खेल में हो रहे अन्याय का विरोध करना शुरू किया। यही विरोध करने की हिम्मत धीरे-धीरे उन्हें उस रास्ते की ओर ले गई, जहां से समाजसेवा और राजनीति की यात्रा की शुरुआत हुई।
🧑🎓 कॉलेज के दिनों से संघर्ष का बीज
कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि युवाओं की समस्याओं को गंभीरता से कोई नहीं लेता। उन्होंने एक छात्र टोली बनाई और कॉलेज में व्याप्त असुविधाओं के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई। उनकी नेतृत्व क्षमता और साहसिकता के चलते उनका नाम कॉलेज स्तर पर जाना जाने लगा। इसके बाद उन्होंने अपने कदम ग्रामीण राजनीति की ओर बढ़ाए।
🗳️ जनपद चुनाव से लेकर उपाध्यक्ष बनने तक का सफर
राजनीति में यह उनका पहला कदम था जब उन्होंने जनपद सदस्य का चुनाव लड़ा। पहली बार में ही उन्होंने विजय हासिल की और यही से शुरू हुआ उनका असली राजनीतिक सफर। लोगों ने उन्हें नाम से नहीं, अब ‘#सुखेन्द्र_सिंह_बन्ना’ के नाम से पहचानना शुरू कर दिया। जनपद उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने बिना किसी भेदभाव और लोभ के जनसेवा को अपना उद्देश्य बना लिया। उनके कार्यों और सेवा भावना ने उन्हें एक ब्रांड बना दिया—एक ऐसा नाम, जिस पर लोग आंख बंद करके भरोसा करने लगे।
💍 विवाह की उम्र में भी तपस्या का मार्ग
समाज में जब एक उम्र के बाद शादी की बातें शुरू होती हैं, तब बन्ना जी ने उस मोड़ पर भी जनसेवा की राह नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने क्षेत्र को ही अपना परिवार मान लिया। शादी न करके उन्होंने यह साबित किया कि किसी भी काम के लिए सम्पूर्ण समर्पण जरूरी होता है और उन्होंने यह समर्पण अपने लोगों के लिए किया।
🏛️ कांग्रेस की राह और विधायक बनने की कहानी
अपने राजनीतिक सफर के दौरान उन्होंने खुद से एक बड़ा सवाल पूछा—क्या कांग्रेस मेरे विचारों के अनुकूल है? जवाब उन्हें खुद के भीतर से मिला। कांग्रेस की वो विचारधारा जिसने देश को आज़ादी दिलाई थी, उन्हें शुरू से ही आकर्षित करती रही। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं के पदचिन्हों पर चलने का निश्चय किया और लगातार संघर्ष करते हुए मऊगंज विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए।
🛣️ सड़क से सदन तक: मऊगंज को दी कई सौगातें
पहली बार विधायक बनने पर भी उन्होंने अपनी विनम्रता और ऊर्जा को बनाए रखा। वे सदन में केवल कुर्सी पर बैठने नहीं गए, बल्कि सड़क की लड़ाई सदन तक ले गए। उन्होंने मऊगंज के विकास के लिए कई योजनाएं पास करवाईं, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतों पर काम कराया।
📉 हार के बाद भी हौसले बुलंद
हालांकि अगली बार चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन यह हार उनके हौसले को डिगा नहीं पाई। हारने के बावजूद भी वे अपने वादों और कार्यों के लिए प्रतिबद्ध रहे। लोगों ने देखा कि चुनाव हारने के बाद भी वे उसी जोश और लगन से मऊगंज को जिला बनवाने के लिए संघर्ष करते रहे।
🧘 ब्रह्मचर्य जीवन और निष्ठा की मिसाल
उन्होंने ब्रह्मचर्य जीवन को अपनाया, कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया, बाधाओं का सामना किया लेकिन कभी डगमगाए नहीं। टिकट मिलने पर जब अपनों ने ही छल किया और दोबारा चुनाव हार गए, तब भी वे अगले ही दिन से उसी रफ्तार में जनसेवा में लग गए। न कोई ग़म, न कोई शिकवा—बस समर्पण।
🌍 आज भी एक जनसेवक की तरह सक्रिय
आज भी वे सिर्फ अपने जिले ही नहीं, बल्कि आस-पास के जिलों में भी लोगों की मदद करते हैं, न्याय दिलाने में आगे रहते हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि विधायक होना या न होना मायने नहीं रखता, जनसेवक की आत्मा में सेवा ही सर्वोच्च है।
🗣️ एक विचार, जो सबको सोचने पर मजबूर करता है
बन्ना जी कहते हैं
> “मैं एक सामान्य परिवार से आता हूं। मेरी सोच है कि जिस व्यक्ति में साहस हो, हर किसी को साथ ले चलने की ताकत हो और चुनौतियों का डटकर सामना कर सके, उसे चुनने में हम क्यों भूल जाते हैं? जिसने अपना जीवन समर्पित कर दिया, उसके लिए भी हमें एकजुट होकर कुछ करना चाहिए।”
सुखेन्द्र सिंह बन्ना की कहानी सिर्फ राजनीति की नहीं, बल्कि त्याग, समर्पण, सेवा और साहस की भी है। उन्होंने यह दिखाया कि असल नेता वह नहीं जो सत्ता में हो, बल्कि वह है जो हर हाल में लोगों के बीच बना रहे। वे आज भी एक प्रेरणा हैं—हर उस युवा के लिए जो बदलाव चाहता है, हर उस व्यक्ति के लिए जो संघर्ष से नहीं डरता।