हाईकोर्ट ने बजाई न्याय की घंटी: रीवा के एसडीएम की तानाशाही पर गिरी कानून की गाज
रीवा के त्यौंथर में जो कुछ हुआ, वह एक चेतावनी है — अधिकारियों के लिए, कि उनकी कुर्सी स्थायी नहीं है और न ही उनके आदेश। जनता की आह जब कानून तक पहुँचती है, तो उसका जवाब गूंज बनकर सत्ता की दीवारों को हिला देता है।

मध्य प्रदेश का रीवा जिला, जिसे अक्सर अपनी सांस्कृतिक विरासत और शांत स्वभाव के लिए जाना जाता है, इन दिनों प्रशासनिक तानाशाही और न्यायिक हस्तक्षेप को लेकर चर्चा में है। खास तौर पर त्यौंथर तहसील के एसडीएम संजय कुमार जैन के रवैये ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाले अधिकारी खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं।
यह कहानी सिर्फ एक अधिकारी की मनमानी की नहीं है, बल्कि यह उस पूरे तंत्र की पोल खोलती है जो जनता की सेवा के नाम पर सिर्फ अहंकार और आदेश की भाषा बोलता है। लेकिन जब न्यायालय की गूंज सुनाई देती है, तो सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी खामोश खड़ा नजर आता है।
‘अहम’ की उड़ान और ‘आदेश’ की अवहेलना
त्यौंथर के एसडीएम संजय कुमार जैन पर आरोप है कि उन्होंने हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश को नजरअंदाज किया। यह आदेश किसी व्हाट्सएप फॉरवर्ड की तरह नहीं था जिसे देखा और भुला दिया जाए, बल्कि यह कानून की उस नींव का प्रतीक था जिस पर एक लोकतांत्रिक समाज टिका होता है।
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लेकिन अफसोस की बात है कि एसडीएम साहब ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया। यह वही मानसिकता है जिसमें सत्ता में बैठे लोग यह मान लेते हैं कि उनके फैसले अंतिम हैं और जनता को बस सिर झुकाकर मान लेना चाहिए।
जब अदालत ने दिखाई अपनी ताकत
हर कहानी में एक मोड़ आता है, और इस मामले में वह मोड़ था – हाईकोर्ट की फटकार। जब यह मामला माननीय हाईकोर्ट के संज्ञान में आया, तो वहां से जो संदेश निकला, वह पूरे प्रशासनिक तंत्र के लिए चेतावनी बन गया।
अदालत ने न सिर्फ आदेश की अनदेखी पर नाराज़गी जताई, बल्कि यह भी साफ कर दिया कि सरकारी पद पर बैठा कोई भी अधिकारी अगर कानून का पालन नहीं करता, तो वह भी जवाबदेह है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘सरकारी कुर्सी पर बैठकर अगर कोई अपने अहंकार में जनता की आवाज को दबाएगा, तो न्याय की हथौड़ी उस घमंड को चकनाचूर कर देगी।
जनता की उम्मीदें और टूटता विश्वास
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या आम जनता को निचले स्तर पर न्याय की उम्मीद करनी चाहिए? लोग यह कहने लगे हैं कि तहसील स्तर के अफसरशाही में ‘सेवा’ का भाव नहीं, ‘सत्ता’ की गूंज सुनाई देती है।
त्यौंथर जैसे क्षेत्र में, जहाँ लोग पहले से ही संसाधनों और सुविधा की कमी से जूझते हैं, वहां यदि एसडीएम स्तर का अधिकारी भी न्याय के आदेशों की अवहेलना करे, तो जनता किसके दरवाज़े पर जाए।
“SDM” – सत्ता का प्रतीक या जवाबदेही का?
यह सवाल अब पूरे रीवा जिले में गूंज रहा है। एसडीएम का मतलब सिर्फ “Sub Divisional Magistrate” नहीं है, बल्कि यह उस जिम्मेदारी का प्रतीक है जिसे जनता ने अपने प्रतिनिधियों और अधिकारियों को सौंपा है। लेकिन त्यौंथर के इस मामले में तो यह पद मानो “Sorry Dear Magistrate” बन गया है — जब आदेश की अवहेलना करते पकड़े गए, तो चुपचाप शपथ पत्र के पीछे छुपना पड़ा।
हुकूमत बनाम इंसाफ – कौन जीतेगा?
इतिहास गवाह है कि जब भी सत्ता का नशा सिर चढ़ा है, वहां कानून ने देर-सबेर अपनी ताकत दिखाई है। रीवा की यह घटना भी उसी कड़ी का हिस्सा है। यह मामला यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी ऊँची कुर्सी हो, कानून से ऊपर कोई नहीं।
हाईकोर्ट की सख्ती ने न केवल उस अधिकारी को झुका दिया, बल्कि पूरे सिस्टम को यह संदेश दे दिया कि ‘अदालत का सम्मान सर्वोपरि है।
एक नई शुरुआत की उम्मीद
इस घटना ने न केवल प्रशासन को आईना दिखाया, बल्कि आम जनता को यह भरोसा भी दिलाया है कि न्याय अब भी ज़िंदा है। यदि अन्याय होता है और आवाज उठाई जाती है, तो व्यवस्था सुनने को मजबूर होती है। यह घटना उन सभी आम नागरिकों के लिए प्रेरणा बन सकती है जो अपने हक के लिए लड़ना चाहते हैं लेकिन डरते हैं कि “अधिकारी कुछ भी कर सकता है।