MP Election: क्या कहता है किसानों का वोट बैंक इस बार किस पर भरोसा दिखाएंगे अन्नदाता BJP या Congres?

MP Election: क्या कहता है किसानों का वोट बैंक इस बार किस पर भरोसा दिखाएंगे अन्नदाता BJP या Congres?
11 लाख 97 हजार किसान समय पर ऋण न चुकाने के कारण अपात्र हो गए थे इन्हें न तो बिना ब्याज का ऋण मिल रहा था और न ही सहकारी समितियों से खाद-बीज सरकार ने ब्याज माफी दी तब कहीं जाकर ये किसान सरकारी सुविधा लेने के लिए पात्र हुए हैं किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार न होने के कई कारण हैं।
देखा जाए तो हमारे किसान सबसे बड़ा वोट बैंक हैं पर संगठित नहीं हैं जातियों में बंटे हैं और जब चुनाव आता है तो अपने हित की बात को छोड़कर जाति के पीछे चल देते हैं यही कारण है कि उनकी आवाज भी उस बुलंदी को नहीं छू पाती है कि जिससे सरकारों को उनके हित में कदम उठाने मजबूर होना पड़े।
अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देने के बावजूद किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की बात करें तो कृषि क्षेत्र का योगदान 23 प्रतिशत के आसपास है।
वर्ष 2001-02 में जो कृषि विकास दर केवल तीन प्रतिशत थी वो अब 19 प्रतिशत हो गई है गेहूं के निर्यात में मध्य प्रदेश ने 46 प्रतिशत भागीदारी की है धान की पैदावार 131.8 लाख टन हो गई है इसके बाद भी।
तीन माह पहले तक 11 लाख 97 हजार किसान ऐसे थे जो सहकारी समितियों का बिना ब्याज का कर्ज तक नहीं चुका पा रहे थे मध्य प्रदेश को तो अब तक सात कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुके हैं।
प्रदेश के एक करोड़ 11 लाख किसान और उससे जुड़े लोगों को देखें तो यह सबसे बड़ा वर्ग है जो न केवल चुनाव परिणाम को जिस ओर चाहे उस तरफ मोड़ सकता है बल्कि सरकारों को भी अपने हित में कदम उठाने के लिए मजबूर करने की ताकत रखता है पर ऐसा होता नहीं है।
इसका बड़ा कारण इनका संगठित न होना है किसान जब कभी भी चुनाव आते हैं तो जाति-समुदाय को आगे रखते हैं जबकि इनका नेटवर्क सबसे बड़ा है साढ़े चार हजार सहकारी समितियों के माध्यम से 40 लाख किसान जुड़े हुए हैं।
अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान होने के बावजूद किसान आर्थिक तौर पर कमजोर है जबकि फसल क्षेत्र 5.46 प्रतिशत बढ़ा है धान के क्षेत्र में बीते एक वर्ष में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है पिछले दस वर्ष में धान का औसत उत्पादन 80.87 लाख टन रहा है।
इसी तरह गेहूं का औसत उत्पादन बीते दस वर्षों में 245.89 लाख टन और मक्का का 36.93 लाख टन रहा है दालों में देखें तो पिछले दस वर्षों में चना का उत्पादन 35.83, उड़द का 7.35 और मसूर का औसत उत्पादन 4.78 टन रहा है सरसों सोयाबीन और कपास में भी यही स्थिति है इसके बाद भी किसान की स्थिति में अधिक सुधार परिलक्षित नहीं होता है।
11 लाख 97 हजार किसान समय पर ऋण न चुकाने के कारण अपात्र हो गए थे इन्हें न तो बिना ब्याज का ऋण मिल रहा था और न ही सहकारी समितियों से खाद-बीज सरकार ने ब्याज माफी दी तब कहीं जाकर ये किसान सरकारी सुविधा लेने के लिए पात्र हुए हैं।
किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार न होने के कई कारण हैं बीज को लेकर अभी भी किसानों की निर्भरता बाजार पर है सहकारी क्षेत्र में बीज उत्पादन को प्रोत्साहित करने के कदम तो उठाए गए पर ये नाकाफी सिद्ध हुए।