मध्यप्रदेश

एमपी के किसानों को बड़ा झटका: PM किसान योजना से कटेगा नाम CM मोहन का ऐलान

नरवाई जलाने वाले किसानों को नहीं मिलेगा सम्मान निधि और एमएसपी का लाभ सीएम मोहन यादव का सख्त निर्णय

मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों के हित और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा और कड़ा कदम उठाया है। खेतों में नरवाई (फसल के अवशेष) जलाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि अब से जो किसान नरवाई जलाते पाए जाएंगे, उन्हें “मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि” योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इसके साथ ही, उनकी फसल की सरकारी समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी भी नहीं की जाएगी।

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नरवाई जलाना: एक गंभीर समस्या

फसल कटाई के बाद खेतों में बचे डंठलों को जलाना यानी नरवाई जलाना एक आम प्रथा बन गई है, लेकिन इसके दुष्परिणाम बहुत गंभीर हैं। इससे वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है। साथ ही, खेत की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता पर बुरा असर पड़ता है। सरकार ने पहले भी इसे प्रतिबंधित किया था, लेकिन किसानों द्वारा नियमों की अनदेखी जारी रही।

सीएम का सख्त रुख

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राजस्व विभाग की समीक्षा बैठक में कहा कि पर्यावरण की रक्षा और कृषि भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया है। उन्होंने निर्देश दिए कि नरवाई जलाने वाले किसानों की पहचान कर, उन्हें तत्काल प्रभाव से ‘मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि’ योजना से बाहर किया जाए। साथ ही, ऐसे किसानों से गेहूं, धान, सोयाबीन जैसी फसलों की MSP पर खरीदी भी बंद की जाए।

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सरकारी योजनाओं से बाहर होंगे नियम उल्लंघनकर्ता

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वे नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। जो किसान राज्य सरकार के निर्देशों की अवहेलना कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी। यह निर्णय न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह किसानों को जिम्मेदारी का बोध कराने के लिए भी जरूरी है।

समापन और निष्कर्ष

सरकार का यह निर्णय निश्चित रूप से कड़ा है, लेकिन इसके पीछे पर्यावरण संतुलन और कृषि भूमि की रक्षा का बड़ा उद्देश्य है। किसानों को अब समझना होगा कि थोड़ी सी लापरवाही न केवल प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि उनकी खुद की आर्थिक सहायता पर भी असर डाल रही है। समय की मांग है कि किसान जागरूक बनें और वैकल्पिक समाधान अपनाकर खेती करें, जिससे न प्रकृति को नुकसान हो और न ही उन्हें सरकारी योजनाओं से वंचित होना पड़े।

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