Maugaj News: “बेटा, घर मत आना… शायद मुझे लेकर जाएं।”यह आखिरी शब्द थे जो मंजू साकेत ने अपने पिता औसेरी साकेत से 17 मार्च की सुबह सुने थे। उस समय किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह एक पिता की अंतिम चेतावनी होगी—जिसके बाद न कोई फोन आया, न कोई आवाज़। आज, 15 दिन बाद, जब गड़रा गांव के एक घर से तीन लाशें फंदे पर झूलती मिलीं, तो गांव की चुप्पी चीखने लगी।
मऊगंज: घर के अंदर मिले मां-बच्चों के शव, परिजनों ने पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप
गड़रा गांव की पथराई गलियां और दहशत का साया
रीवा जिले के मऊगंज तहसील के गड़रा गांव में अब सिर्फ खामोशी बची है। हिंसा के बाद यहां धारा 163 लागू है। गांव के अधिकतर घरों में ताले लटके हैं, गलियां वीरान हैं और सड़कों पर पुलिस का पहरा है। गांव की हालत देखकर लगता है मानो वक़्त थम गया हो। लोग घरों में कैद हैं, न कोई बाहर आता है, न कोई भीतर जा सकता है।
30 से अधिक पुलिसकर्मी दो शिफ्ट में तैनात हैं। यह वही गांव है जहां 15 मार्च को एक युवक सनी द्विवेदी की पीट-पीटकर हत्या हुई थी, और फिर एएसआई रामचरण गौतम की जान भी गई थी। उसके बाद से ही यह गांव सुर्खियों में है। लेकिन इस बार खबर कुछ और है—एक परिवार की मौत, जिनका जुर्म अब तक साबित नहीं हुआ।
तीन लाशें, एक सच और कई सवाल
55 वर्षीय औसेरी साकेत, उनकी 11 वर्षीय बेटी मीनाक्षी और 8 साल का बेटा अमन—तीनों की लाशें उनके ही घर में फंदे से लटकी मिलीं। शव बुरी तरह सड़ चुके थे, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि ये करीब दो हफ्ते पुराने हैं।
बड़ी बेटी मंजू का कहना है, “पिताजी ने कहा था कि बेटा घर मत आना, पुलिस बहुत पीट रही है। अगर मुझे पकड़ लिया, तो शायद वापस न आ पाऊं।” अगले दिन से उनका फोन बंद हो गया। मंजू का आरोप है कि पुलिस ने ही पिता और भाई-बहन को मार कर लटका दिया। “इतने छोटे बच्चे खुद फांसी कैसे लगा सकते हैं?” मंजू सवाल उठाती है।
औसेरी की कहानी: तीन शादियां, छह बच्चे और संघर्ष भरी जिंदगी
औसेरी लाल साकेत एक साधारण दर्जी थे, जो सिलाई करके अपने परिवार का पेट पालते थे। उन्होंने तीन शादियां की थीं। पहली पत्नी की बीमारी से मौत हो गई, दूसरी पत्नी दसोदरी से चार बच्चे हुए—मंजू, पुष्पा, चंपा और पवन। 2007 में दसोदरी की भी मौत हो गई। बच्चों की देखभाल के लिए तीसरी शादी की, जिससे मीनाक्षी और अमन का जन्म हुआ। लेकिन तीसरी पत्नी भी सात साल बाद उन्हें छोड़कर चली गई। हिंसा के बाद से औसेरी का काम बंद हो गया था। उनकी आर्थिक स्थिति पहले ही कमजोर थी, और अब यह घटना उनके जीवन को ही लील गई।
पुलिस पर गंभीर आरोप, लेकिन अब तक चुप्पी
परिवार और गांव वालों का आरोप है कि पुलिसकर्मी घरों में घुसकर महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ते। चचेरे भाई पुरुषोत्तम साकेत बताते हैं कि उन्हें 14 मार्च को आखिरी बार औसेरी से मिलने का मौका मिला था, लेकिन हिंसा के बाद गांव में आना मना हो गया। औसेरी के छोटे भाई रामधारी साकेत कहते हैं, “हमने बहुत कोशिश की मिलने की, लेकिन पुलिस घर से निकलने ही नहीं देती थी। अब जब लाशें मिली हैं, तो सब हैरान हैं।
पवन की टूटी शादी, उजड़ता परिवार
औसेरी के बेटे पवन की 29 अप्रैल को शादी होनी थी। उसका तिलक 27 अप्रैल को तय था। लेकिन अब उस घर से शादी के बैंड-बाजे नहीं, बल्कि तीन अर्थियां निकली हैं। वह शून्य में ताकते हुए सिर्फ इतना कहता है, “सब खत्म हो गया।
न्याय की मांग और प्रशासन की चुप्पी
गांव के लोगों की मांग है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। सवाल उठ रहे हैं—अगर यह आत्महत्या है, तो क्यों और कैसे? और अगर यह हत्या है, तो जिम्मेदार कौन है? क्या बेकसूरों को मारने के बाद खामोश कर दिया गया? क्या न्याय अब भी गरीब की पहुंच से बाहर है?
अंतिम शब्द: कब टूटेगा खामोशी का यह पर्दा?
गड़रा गांव में पसरी यह चुप्पी अब किसी चीख से कम नहीं। एक बेकसूर परिवार की मौत के बाद कई सवाल अनुत्तरित हैं। एक पिता की आखिरी पुकार—“बेटा, घर मत आना…”—आज पूरे समाज से पूछ रही है, क्या अब भी कोई सुरक्षित है।