अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस से भारत के करीबी संबंधों के चलते 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है। अब संकेत मिल रहे हैं कि भारत, चीन और रूस अमेरिका की एकतरफा नीतियों का मिलकर जवाब देने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन के तिआनजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे, जबकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में भारत दौरे पर आएंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह त्रिकोणीय सहयोग एक नए भू-राजनीतिक ध्रुव के उदय की ओर इशारा करता है।
भारत-चीन रिश्तों में नई शुरुआत
2020 के सीमा विवाद के बाद पहली बार पीएम मोदी का चीन दौरा तय हुआ है। इससे पहले जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चीन जाकर अपने समकक्ष एडमिरल डोंग जून से मिले थे — यह 11 वर्षों में किसी भारतीय रक्षा मंत्री की पहली चीन यात्रा थी। 18 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत आकर एनएसए अजीत डोभाल से रणनीतिक और सीमा मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
भारत-रूस संबंधों में मजबूती
रूस के साथ भारत का व्यापार 2023-24 में 65.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में 33% ज्यादा है। रक्षा सहयोग में भी S-400, T-90 टैंक, Su-30MKI, ब्रह्मोस मिसाइल और AK-203 राइफल जैसे प्रोजेक्ट अहम भूमिका निभा रहे हैं। अमेरिका की नाराजगी के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है और इसे अपने राष्ट्रीय हित में सही ठहराया है।
RIC समूह की वापसी
रूस-भारत-चीन (RIC) समूह, जो कुछ समय से निष्क्रिय था, अब फिर सक्रिय होने की तैयारी में है। तीनों देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समर्थक हैं और G7 व BRICS के विकल्प के रूप में RIC को वैश्विक दक्षिण के लिए फायदेमंद माना जा रहा है।
संतुलन की चुनौती
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस नए समीकरण में शामिल होते समय सावधानी बरतनी होगी। पिछले दशक में भारत ने अमेरिका और पश्चिम से गहरे संबंध बनाए हैं, जो चीन और रूस को हमेशा सहज नहीं लगते। ऐसे में रणनीतिक स्वायत्तता और घरेलू हितों के बीच संतुलन बनाए रखना अहम होगा।