जिम्मेदारी और विवादों से भरा रहा सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर, दिल्ली में हुआ निधन

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 77 वर्ष की उम्र में निधन, आर्टिकल 370 हटाने जैसे ऐतिहासिक फैसलों में निभाई थी अहम भूमिका।

भारत की राजनीति में अपनी बेबाक राय और निर्णायक फैसलों के लिए पहचाने जाने वाले सत्यपाल मलिक का मंगलवार दोपहर निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दोपहर 1:20 बजे अंतिम सांस ली। मलिक लंबे समय से किडनी संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक ऐसा चेहरा चला गया जो हमेशा सत्ता से सवाल करने और जनता की बात खुलकर रखने के लिए जाना जाता था।

राजनीति में शुरुआती कदम

24 जुलाई 1946 को जन्मे सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में की थी। इसके बाद वे राज्यसभा और लोकसभा दोनों के सदस्य रहे। भारतीय राजनीति में उनके अनुभव का दायरा बहुत व्यापक रहा—चाहे वह संसद हो, राज्यपाल का पद हो या फिर जनता से सीधे संवाद।

राज्यपाल के रूप में भूमिका

सत्यपाल मलिक ने बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों में राज्यपाल के रूप में सेवाएं दीं। लेकिन उनका कार्यकाल सबसे ज्यादा चर्चा में तब आया जब वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने। 23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहने के दौरान, उन्होंने एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय देखा जो देश की राजनीति में मील का पत्थर बन गया।

आर्टिकल 370 हटाने का ऐतिहासिक फैसला

मलिक के कार्यकाल के दौरान 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का निर्णय लिया। इस कदम ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया गया। सत्यपाल मलिक इस फैसले के समय राज्यपाल के पद पर थे और उन्होंने इस निर्णय को प्रशासनिक स्तर पर सफलतापूर्वक लागू करवाने में अहम भूमिका निभाई।

बेबाक बयानों के लिए पहचाने गए

सत्यपाल मलिक सिर्फ एक प्रशासक ही नहीं, बल्कि एक मुखर विचारधारा के नेता थे। उन्होंने कई बार केंद्र सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए और किसानों के मुद्दों, भ्रष्टाचार और नौकरशाही की आलोचना करने में कभी पीछे नहीं हटे। उनके बेबाक बयानों ने उन्हें जनता के बीच एक अलग पहचान दिलाई।

निधन से उपजा खालीपन

सत्यपाल मलिक का निधन भारतीय राजनीति के लिए एक गहरा आघात है। वे उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे, जो पद पर रहते हुए भी सत्ता से असहमति जताने का साहस रखते थे। उनका जाना एक ऐसे युग का अंत है जिसमें राजनीति केवल सत्ता तक सीमित नहीं थी, बल्कि जनहित की सच्ची आवाज भी थी।

सत्यपाल मलिक का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे राजनीति में रहते हुए भी सच्चाई, साहस और जनता की भलाई को प्राथमिकता दी जा सकती है। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका विचार, नेतृत्व और निर्णय हमेशा देश की राजनीतिक स्मृति में जीवित रहेगा।

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