हाल ही में एक प्रेस वार्ता में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोका था। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की तारीफ करते हुए उन्हें “प्रभावशाली नेता” बताया। ट्रंप ने कहा, “मैंने पाकिस्तान से युद्ध रोका। मैं पाकिस्तान से प्यार करता हूँ। मोदी एक शानदार इंसान हैं। मैंने कल रात उनसे बात की।
मोदी का पलटवार: अमेरिकी भूमिका से इनकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के दावे को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच जो संघर्ष हुआ, उसमें किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। मोदी ने साफ किया कि यह विवाद केवल दोनों देशों की सैन्य स्तर की सीधी वार्ता से सुलझा था। उन्होंने दोहराया कि भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को कभी स्वीकार नहीं करता।
भारत का रुख साफ: “संप्रभु कूटनीति सर्वोपरि”
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी ट्रंप के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि मई 2025 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच न तो किसी व्यापारिक मुद्दे पर चर्चा हुई, न ही अमेरिका की कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका रही।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: ट्रंप की तारीफ
वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों की प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने तनाव को कम करने में सकारात्मक भूमिका निभाई। पाकिस्तान की ओर से यह भी कहा गया कि वे अमेरिका के साथ व्यापारिक सहयोग को मजबूत करना चाहते हैं।
“ऑपरेशन सिंदूर” और संघर्ष विराम
भारत ने 7 मई 2025 को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की थी, जिसमें आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की गई। इसके जवाब में पाकिस्तान ने मोर्चा खोला और दोनों देशों के बीच चार दिन तक सीमित संघर्ष चला। 10 मई को पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम की अपील की गई, जिसे भारत ने मानते हुए संघर्ष विराम की घोषणा कर दी।
ट्रंप-मुनीर मुलाकात: नए समीकरण की शुरुआत
18 जून 2025 को पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच वॉशिंगटन में मुलाकात प्रस्तावित है। यह मुलाकात उस समय हो रही है, जब क्षेत्र में तनाव कम जरूर हुआ है लेकिन भरोसे की डोर अभी भी कमजोर है।
निष्कर्ष: बयानबाज़ी बनाम ज़मीनी हकीकत
भारत-पाक संघर्ष को लेकर अमेरिकी दखल का दावा जहां ट्रंप की छवि गढ़ने की कोशिश माना जा रहा है, वहीं भारत ने संप्रभुता और स्वतंत्र कूटनीति को प्राथमिकता देते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया है। यह घटनाक्रम बताता है कि क्षेत्रीय मुद्दों में अंतरराष्ट्रीय बयानबाज़ी की एक सीमा होती है, और जमीनी सच्चाई अक्सर इससे अलग होती है।