जब एक रिटायर्ड सैनिक सूटकेस में गहने और पैसे लेकर पहुंचा रीवा कलेक्टर कार्यालय
योगेश तिवारी की कहानी सिर्फ उनकी नहीं है। यह उस व्यवस्था का आईना है, जहां आम नागरिक को अपने ही हक के लिए रिश्वत के कटघरे में खड़ा होना पड़ता है।

रीवा जिले की जनसुनवाई में एक दृश्य ने सभी की आत्मा झकझोर दी—एक भूतपूर्व सैनिक, योगेश कुमार तिवारी, हाथ में सूटकेस लेकर प्रशासनिक चौखट पर पहुँचे। उस सूटकेस में रखे थे उनकी पत्नी के गहने और रिटायरमेंट के बचे-खुचे पैसे। उनके शब्द थे—“अगर बिना रिश्वत दिए मेरी ज़मीन नहीं मिलेगी, तो लीजिए… ये है मेरी बचत, रिश्वत ही सही।
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योगेश तिवारी त्योथर तहसील के ग्राम मलपार के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि गांव के ही एक दबंग व्यक्ति—विद्याधर शुक्ला, जो 376 जैसे गंभीर आरोपों में जेल जा चुका है, अब तहसील कर्मियों की मिलीभगत से तिवारी की पुश्तैनी ज़मीन पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है। इतना ही नहीं, ज़मीन को ही “सरकारी” घोषित कर दिया गया, जिससे उनका पूरा हक छीना गया।
“यह ज़मीन कोई टुकड़ा नहीं, मेरी धरती मां है” — योगेश की आवाज़ में कंपकंपी थी, पर हौसला अडिग था।
उन्होंने बताया कि वह पिछले कई वर्षों से तहसील, कलेक्टर, एसपी ऑफिस के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ निराशा और तारीखें मिलीं। सरकारी कर्मचारी या तो चुप हैं या फिर रिश्वत की खुली मांग कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि “यहां अधिकारी सुबह से सोचते हैं शाम तक ₹1 लाख रिश्वत कैसे कमाएं!
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जनसुनवाई में मौजूद अधिकारी आश्वासन तो दे रहे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर आज भी फाइलें धूल फांक रही हैं।
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देश के लिए जान की बाज़ी लगाने वाला एक सैनिक अगर अपने हक के लिए गहने बेचने को मजबूर हो जाए, तो सवाल सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं रह जाता—यह पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान है।
“मैं रिश्वत देने को तैयार हूं, बस मेरी ज़मीन लौटा दो…”योगेश कुमार तिवारी, भूतपूर्व सैनिक