इस महिला ने छोड़ी सरपंच की कुर्सी अब फैसले की हर तरफ हो रही तारीफ जानें क्या है मामला!

आजकल युवा नौकरी छोड़ राजनीति में हांथ आजमाते हैं। लेकिन दमोह जिले की एक महिला सरपंच ने शिक्षिका बनने के लिए सरपंच की कुर्सी छोड़ने का फैसला किया है। इसके पीछे उनका ध्येय यही है कि वे सरपंच रहते हुए सिर्फ एक गांव को संवार सकती थी।
लेकिन एक शिक्षक बनकर वे हजारों बच्चों का भविष्य संवार सकती हैं। आदिवासी महिला होने के नाते वे परिवार और समाज की बेड़ियों को तोड़कर बुंदेलखंड के दमोह से 500 किलोमीटर की दूरी तय कर खंडवा में सेवा देने आई हैं।
दमोह जिले के खैजरा लखरौनी ग्राम पंचायत में रहने वाली 33 वर्षीय सुधा पति भरत सिंह ठाकुर आठ माह पहले सरपंच पद के लिए निर्विरोध चुनी गई थी।
वे राजनीति की राह पर भले ही चल रही हों लेकिन उनकी इच्छा शिक्षिका बनने की थी। उन्होंने संविदा शिक्षक वर्ग तीन की परीक्षा दी और वे पास हो गई।
उनका शिक्षिका के लिए चयन हुआ तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि, उन्हें अपने घर से 500 किलोमीटर दूर खंडवा के गुलाई माल के प्राथमिक स्कूल में पोस्टिंग मिली।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज अपने पति और 10 वर्षीय बेटी के साथ ज्वाइन करने जनजातीय कार्य विभाग के अपर आयुक्त विवेक पांडेय के दफ्तर पहुंची।
सुधा ने बताया कि दमोह कलेक्टर को सरपंच पद से इस्तीफा देकर शिक्षिका का ज्वाइनिंग लेटर लेने यहां आई हूं। अपर आयुक्त ने सुधा को ज्वाइनिंग लेटर दिया।
इस दौरान सुधा ने बताया कि मेरे ससुर एक शिक्षक थे। मैं शिक्षित थी इसलिए ग्रामीणों ने मुझे सरपंच बनाया। लेकिन मेरा सपना था कि मैं शिक्षिका बनूं।
क्योंकि मैं सरपंच बनकर सिर्फ एक गांव का विकास कर सकती थी, लेकिन अब मेरे पास ज्यादा स्कोप है। मैं हजारों बच्चों का भविष्य बना सकती हूं जिससे वे बेहतर इंसान बन सके और एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके
जनजातीय कार्य विभाग के अपर आयुक्त विवेक पांडेय ने बताया कि सुधा आज हमारे कार्यकाल में आई थी। उन्होंने बताया कि वह सरपंच का पद छोड़ कर शिक्षिका बन रही है।