रीवा

एक ऐसा क्रिकेट प्लेयर जिसे दुनिया जानती है पर विंध्य के लोग अंजान है मिलिए इनसे

एक ऐसा क्रिकेटर, जिसको देश-दुनिया तो जानती है, लेकिन अपने जिले में ही गुमनाम है। उसका जन्म तो रीवा जिले के त्योंथर कस्बे में हुआ, लेकिन क्रिकेट खेलना सतना शहर के गांधी स्टेडियम में सीखा। फिर छोटे-मोटे मैच खेलकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य की टीम में सिलेक्ट होकर आज DCCBI (दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया) टीम का सदस्य बना। यह क्रिकेटर आज हौसलों के दम पर आईआईटी इंदौर में सीनियर असिस्टेंट हैं। 2021 में IPL की तर्ज पर शारजाह (UAE) में हुई दिव्यांग प्रीमियर लीग में बतौर कप्तान खेल चुके हैं।

एक ऐसा क्रिकेट प्लेयर जिसे दुनिया जानती है पर विंध्य के लोग अंजान है मिलिए इनसे

जानिए दिव्यांग क्रिकेटर की कहानी,,,

मेरा नाम बृजेश द्विवेदी है। 15 जून 1982 को जन्म रीवा ​जिले के त्योंथर कस्बे में हुआ। तीन भाई और एक बहन के बीच मैं सबसे छोटा हूं। पिता राज्य परिवहन निगम के सतना डिपो में कंडक्टर थे। ऐसे में जन्म के कुछ दिनों बाद माता-पिता के साथ सतना पहुंच गया। मेरे जन्म से पहले देशभर में पोलियो महामारी का प्रकोप फैला हुआ था। डेढ़ वर्ष की उम्र होते ही पोलियो से मेरा पूरा शरीर बेजान हो गया। उस समय पोलियो लाइलाज बीमारी थी। मां अस्पताल गई। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की मुझे पोलियो हो गया है।

मां के सहारे चलने लगे

मां ने इलाज पूछा, तो डॉक्टर का जवाब था, भगवान की मर्जी। चिकित्सकों ने कहा कि तेल से जितनी मालिश होगी, उतना जल्दी प्रभाव पड़ेगा। मां ने दिन-रात एक कर दिए। सिर्फ इसी उम्मीद में की बेटा खड़ा हो जाए। भगवान ने ऐसा चमत्कार किया कि मैं 7 दिन में खड़ा हो गया। डॉक्टर के पास गए तो बोले, ये चमत्कार है। हालांकि, एक पैर आज भी पोलियोग्रस्त है। पोलियो पूरी तरह खत्म नहीं होता है, जो है मां की बदौलत है। इसके बाद सतना में ही एक निजी स्कूल में क्लास 1 से लेकर 12वीं की पढ़ाई की।

बचपन से क्रिकेट खेलने की आदत बन गई।

एक ऐसा क्रिकेट प्लेयर जिसे दुनिया जानती है पर विंध्य के लोग अंजान है मिलिए इनसे
ट्रॉफी के साथ

राज्य परिवहन में कंडक्टरी करने वाले पिता की जितनी सैलरी मिलती, हम तीन भाई और एक बहन की पढ़ाई में कम पड़ जाती। फिर भी पिता ने सबको पढ़ाया। उस समय पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि क्रिकेट की किट खरीद सकूं। ऐसे में प्लास्टिक की गेंद से खेलकर मन हल्का कर लेते। जब भी घर वालों से कहूं, तो बैट की जगह लकड़ी की मोगरी थमा देते। किसी तरह बैट का जुगाड़ तो बन गया, पर बॉल की तलाश अधूरी थी। एक दिन फटी गेंद मिल गई। ऐसे में गेंद को मोजे में डालकर सिल दिया। फिर समय बदला। अंतत: दोस्तों ने चंदा मिलाकर टेनिस बॉल खरीद दी।

सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ जैसे बनने की ललक

स्कूल के दिन बीते तो सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ बनने की कसम खा ली। पर तब गुलाबी गेंद, बैट, ग्लव्स और पैड टीवी में ही देखने को मिले थे। हकीकत में खरीदना किसी कल्पना से कम नहीं था। एक सीनियर खिलाड़ी ने बाउंड्री में बॉल उठाते देखा तो क्रिकेट की प्रतिभा पहचान ली। उसने अपना टूटा-फूटा बैट थमा दिया। इसी बैट को आशीर्वाद समझकर घर लाया। फिर फेविकोल लगाकर रेशम के धागे से बैट तैयार कर लिया। उस समय बैट मिलना किसी वर्ल्ड कप मिलने से कम नहीं था। हालांकि, उसी दिन से क्रिकेटर बनने का जुनून सवार हो गया।

एक ऐसा क्रिकेट प्लेयर जिसे दुनिया जानती है पर विंध्य के लोग अंजान है मिलिए इनसे
ट्रॉफी को चूमते

सुबह 3 बजे से दोपहर 12 बजे तक बहाते थे पसीना
बृजेश द्विवेदी ने बताया कि रोजाना सुबह 3 बजे से दोपहर 12 बजे तक बिरला के गांधी स्टेडियम में पसीना बहाना आदत बन गई। सबसे पहले 6 किलोमीटर तक साइकिल चलाता। मैदान पहुंचने के बाद पिच में जाकर रोल करता। पिच सूखने के बाद व्यायाम करता। फिर बैट-बॉल खेलकर क्रिकेट में भविष्य देखने लगा। दोपहर में तीन घंटे खाना-पीना और आराम के बाद फिर तीन बजे स्टेडियम पहुंच जाता था। यह सिलसिला 10 साल तक चलता रहा।

अब तक मैदान के अंदर और बाहर लोग मुझे पहचानने लगे थे, पर पोलियोग्रस्त पैर खेल की रुकावट बनने लगा, क्योंकि रोजाना खेल में रनर की जरूरत पड़ने लगी। ऐसे में बॉलिंग पर फोकस किया, जिससे किसी के सहारे की जरूरत न पड़े। कुछ सालों की मेहनत के बाद लेफ्ट आर्म स्पिनर बन गया। मेरी बॉलिंग के चर्चे शहर से गांव तक पहुंच गए। बाहर मैच खेलने जाता तो अच्छा खेलने के पैसे और प्यार मिलता। बुरा खेलने पर गाली भी मिलती।

देश-प्रदेश के लिए खेलने की जगी चाहत
हुनर आया तो देश-प्रदेश के लिए खेलने की चाहत जगी।

छोटे शहरों में दिव्यांग क्रिकेट में भविष्य नहीं दिख रहा था। ऐसे में एक दिन अपनी किट उठाकर दिव्यांग क्रिकेट की खोज में घर से भाग गया। सतना रेलवे स्टेशन पहुंचा, तो भिलाई की ट्रेन खड़ी थी। उसी में सवार हो गया। ट्रेन आगे बढ़ी तो टीटी आए। टिकट मांगे तो थी ही नहीं। बोले स्लीपर ट्रेन में सवार हो। टिकट नहीं है। ऐसे में अब 650 रुपए फाइन देना होगा। तब हमारे पास कुल 200 रुपए थे। इसके बाद अगले स्टेशन में उतरकर जनरल बोगी में घुस गया, लेकिन टीटी के डर से बाथरूम में घुस गया, पर किसी ने मेरा बैग ही चुरा लिया। उसमें प्रैक्टिस वाले जूते थे। भिलाई स्टेशन में उतरा। तब पता चला कि दिव्यांग क्रिकेट का ट्रायल चल रहा है।

1999 में मिला प्रदेश से खेलने का अवसर
मैदान पहुंचा और ट्रायल दिया। तब मेरा मध्यप्रदेश टीम में चयन हो गया। 1999 में दिव्यांग क्रिकेट टीम से जुड़ गया। यहीं से प्रोफेशनल क्रिकेट की शुरुआत हुई। 2003 से 2007 तक मध्य रेलवे की तरफ से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। तब तमिलनाडु के खिलाफ एक मैच में 57 रन बनाए, जिससे मध्य रेलवे की टीम जीत गई। इसके बाद 2007 में दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया (DCCBI) का गठन हुआ।

 नौकरी की ओर बढ़ाया रुझान
क्रिकेट खेलते खेलते 2008 में एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में चयनित हो गया। तब मैंने 4125 रुपए से नौकरी की शुरुआत की। अनुभव और मेहनत जारी रही। इसी बीच साल 2014 में इंजीनियरिंग की एक श्रेष्ठ संस्थान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर का एक पेपर में इश्तिहार देखा। फिर हिम्मत कर आवेदन कर दिया। इंटरव्यू देने गया तो मेरा सिलेक्शन हो गया। नौकरी दो से तीन साल चली। 2017 में एक बार फिर टर्निंग पॉइंट आया। तब राष्ट्रीय दिव्यांग क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन अजमेर में हुआ।

एक मैच में 71 रन और 4 विकेट 
अजमेर में मध्यप्रदेश से खेलते हुए 71 रन की शानदार पारी खेली। वहीं एक मैच में 4 विकेट लिए। तब राष्ट्रीय चयनकर्ताओं ने दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया के लिए अक्टूबर 2017 में आयोजित हुई मैत्री कप (भारत-बांग्लादेश) के लिए टीम में शामिल कर लिया। वहां अच्छे खेल की बदौलत आज भी देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। 2021 में आईपीएल की तर्ज पर शारजाह यूएई में दिव्यांग प्रीमियर लीग आयोजित हुआ। वहां मैं मुंबई आइडियल्स का कप्तान रहा। साथ ही श्रेष्ठ प्रदर्शन किया और टीम सेमीफाइनल तक पहुंची। मार्च 2022 में बांग्लादेश में आयोजित हुई 4 देशों की बंगबंधु सीरीज में भारत से खेला। नेपाल की तपन ट्रॉफी, टाटा स्टीलीयम कप (भारत-बांग्लादेश नेपाल सीरीज), सीसीएल कप में देश को प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है।

अब तक श्रेष्ठ प्रदर्शन
भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम के सदस्य बृजेश द्विवेदी ने बताया कि अब तक उन्होंने 6 सीरीज खेली हैं। इसमें 18 मैच खेलने का अवसर मिला है। 2017 में बांग्लादेश में आयोजित मैत्री कप में 22 बॉल पर 42 रन श्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। इसी तरफ बेस्ट बॉलिंग राजस्थान रॉयल्स के​ खिलाफ दिव्यांग प्रीमियर लीग में 4 विकेट चटकाए। टाटा स्टीलीयम कप ट्रॉफी में नेपाल के खिलाफ एक ओवर दो गेंद में तीन विकेट ले चुके हैं।

समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button