कोशिका चीरकर खून में घुसता है वायरस मौत का तांडव मचाने वाले इबोला से ज्यादा खतरनाक मीजल्स, 1 को हुआ तो 18 पर आफत
महाराष्ट्र में खसरा यानी मीजल्स की चपेट में आने से पिछले दो महीने में 18 लोगों की जान जा चुकी है। मुंबई में ही खसरा से 10 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। मरने वालों में दो वयस्क भी शामिल हैं।
अब तक इस राज्य में खसरे के 807 और अकेले मुंबई में 386 मामले सामने आए हैं। दूसरे स्थान पर केरल है जहां खसरे के 160 केस मिले। बिहार, झारखंड, गुजरात और हरियाणा में भी इसके मरीज मिले हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे खतरनाक बताते हुए राज्यों से कहा है कि मीजल्स के हर केस की सर्तकता से निगरानी हो, समय पर पहचान हो ताकि इस पर तुरंत काबू पाया जा सके। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मीजल्स के खतरे को देखते हुए कहा है कि यह दुनिया भर में बड़ा खतरा बन सकता है।
WHO के अनुसार, खसरा पीड़ित व्यक्ति से 12 से 18 लोगों को इंफेक्शन दे सकता है। क्या खसरा इतना खतरनाक हो सकता है कि इसका वायरस बच्चों के साथ बड़ों की भी जान ले ले। आइए जानते हैं कि खसरा है क्या और इसका वायरस कैसे फैलता है।
मुंबई में मीजल्स का नया वैरिएंट, तेजी से बदल रहा रूप
‘इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ के एक्जीक्यूटिव मेंबर और नागपुर में पीडियाट्रिशियन डॉ. गिरीश चरडे बताते हैं कि मीजल्स आउटब्रेक का मतलब है कि यह देश में एक से दूसरी जगह फैल सकता है। मुंबई में मीजल्स के जो मामले आए हैं वो वायरस का नया वैरिएंट है। यह वायरस तेजी से म्यूटेट करता है।
मीजल्स का कोई भी वैरिएंट हो, सबसे पहले रेस्पेरेटरी सिस्टम डैमेज करता है। यह बच्चों से बूढ़ों तक सब पर असर करता है। यह ब्रेन पर भी असर करता है जिसे मीजल्स इंसेफेलाइटिस कहते हैं। इसका वायरस कुछ वैसा ही है जैसा जापानी इंसेफेलाइटिस (JE)। जापानी इंसेफेलाइटिस मच्छरों से फैलने वाला वायरल इंफेक्शन है जिसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है। इसका असर गोरखपुर में देखने को मिला था। लेकिन मीजल्स का वायरस फेफड़े, एयरवेज और दूसरे रेस्पेरेटरी ऑर्गन को प्रभावित करते हैं।
मुंबई से धनबाद में फैला मीजल्स, येलो जोन में पहुंचा जिला
झारखंड के धनबाद में अक्टूबर में मीजल्स के 22 मामले देखने को मिले थे। इनमें से चार बच्चों की जान चली गई थी। जिले के सिविल सर्जन डॉ. आलोक विश्वकर्मा बताते हैं कि धनबाद के गोविंदपुर, निरसा, टुंडी और झरिया में मीजल्स-रूबेला के मरीजों की पहचान की गई थी। धनबाद जिले को ‘येलो जोन’ में रखा गया है यानी यहां हालात चिंताजनक हो सकते हैं।
डॉ. गिरीश का कहना है कि मीजल्स के उभरने का कारण समय पर वैक्सीनेशन नहीं होना है। देश में कई ऐसे इलाके हैं जहां वैक्सीनेशन का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया। अभी भी 80% ही वैक्सीनेशन हुआ है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली खास कर उत्तरी दिल्ली में वैक्सीनेशन में देरी हुई है।
बच्चों को खसरा का क्यों होता है ज्यादा खतरा
अपोलो अस्पताल दिल्ली के पीडियाट्रिशियन डॉ. अनुज ध्यानी बताते हैं कि इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से बच्चों के खसरे की चपेट में आने की आशंका ज्यादा रहती है। जिन बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी, सबसे ज्यादा खतरा उन्हें है। हालांकि ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें वैक्सीन लेने के बाद भी लोग मीजल्स से पीड़ित हुए हैं। उनकी इम्युनिटी वीक हो जाने और मीजल्स के म्यूटेट होने की वजह से वैक्सीन लगवाने के बाद भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।
मुंह और नाक से बॉडी में एंट्री करता है वायरस
डॉ. ध्यानी कहते हैं कि खसरा का वायरस मुंह और नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। श्वास नली से होते हुए यह वायरस फेफड़े में पहुंचता है। फिर इम्यून सेल्स मैक्रोफेज और डेनड्राइटिक सेल्स को संक्रमित करता है।
फेफड़े के टिश्यूज में मौजूद ये दोनों तरह के सेल्स डिफेंस सिस्टम का काम करते हैं और वायरस के अंदर आने को लेकर चेतावनी देते हैं। इम्यूनिटी कमजोर होने का मतलब इम्यून सेल्स कमजोर होना होता है, और वो वायरस को रोक नहीं पा रहे।
बॉडी के गेटकीपर को ही करता है संक्रमित
फेफडे़ से ये संक्रमित सेल्स लिम्फ नोड्स में चले जाते हैं। वहां B और T सेल्स में भी वायरस आ जाता है। B और T सेल्स वाइट ब्लड सेल्स हैं जो शरीर के लिए डिफेंस मैकेनिज्म तैयार करते हैं और एक तरह से बाहरी चीजों के लिए बॉडी के गेटकीपर का काम करते हैं।
इन सेल्स पर एक प्रोटीन होता है जिसे CD150 कहते हैं। खसरे का वायरस इसी प्रोटीन पर अटैक करता है। यहां से संक्रमित वाइट ब्लड सेल्स खून में जाकर पूरे शरीर में पहुंचते हैं और इस तरह वायरस आसानी से स्प्लीन, लिंफ नोड्स, लिवर, थाइमस, स्किन, किडनी, फेफड़े तक पहुंच जाता है।
मीजल्स के रेअर केस में ब्रेन में हो सकती है सूजन
मीजल्स का वायरस ब्रेन तक भी पहुंच सकता है। हालांकि यह 1000 केस में से एक में ही देखने को मिलता है। वायरस से ब्रेन में सूजन आ जाए तो इसे मेडिकल लैंग्वेज में ‘मीजल्स इनसेफेलाइटिस’ कहते हैं।
बुखार आना, सिर दर्द रहना, आंखों के आगे अंधेरा छाना इसके लक्षण हैं। इसके दूसरे लक्षण भी हो सकते हैं जैसे-बोलने और चलने में लड़खड़ाहट, स्पीच डिस्टर्बेंस होना, चलते समय संतुलन नहीं रहना और दौरे पड़ना।
शरीर के एक हिस्से में कमजोरी य़ा ताकत कम महसूस होती है। एक हाथ, चेहरा, छाती, पैर में कमजोरी महसूस हो तो इसे ‘हेमीपेरेसिस’ कहते हैं।
मीजल्स होने पर बच्चों को निमोनिया का खतरा
दिल्ली के पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश कुमार यादव बताते हैं कि खसरा से पीड़ित बच्चे में निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है। वायरस से लंग्स के सेल्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि बैक्टीरिया से होने वाले निमोनिया की तरह इसमें फेफड़े में मवाद नहीं भरता। इसलिए मरीज को खांसी तो आती है लेकिन बलगम नहीं आता। इसे ‘हैकिंग कफ’ कहते हैं। लेकिन खांसी आने पर ये वायरस बाहर निकलते हैं और दूसरों को भी संक्रमित करते हैं।
बच्चों में अंधेपन का बड़ा कारण मीजल्स है
WHO के अनुसार, मीजल्स के वायरस के कारण बच्चों की आंखों की रोशनी तक चली जाती है। पूरी दुनिया में हर साल इस वायरस के कारण 60 हजार से अधिक बच्चे अंधे हो जाते हैं। मीजल्स का वायरस पैरामाइजोवायरस कोर्निएल एपिथेलियम और कंजक्टिवा को प्रभावित करता है। इसका असर सीधे कॉर्निया पर पड़ता है। विटामन A की कमी के कारण स्थिति बिगड़ती जाती है।
पहले से बीमारियां हैं तो मीजल्स से मल्टी ऑर्गन फेल होने का रिस्क
दिल्ली स्थित मेट्रो हॉस्पिटल के पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश कुमार यादव बताते हैं कि जो लोग पहले से ही बीमारियों से पीड़ित हैं उन पर मीजल्स का वायरस ज्यादा आक्रामक होगा। यदि कोई कैंसर से पीड़ित है तो उसकी इम्यूनिटी कमजोर रहती है। इसी तरह मीजल्स के कारण जब किसी को गंभीर निमोनिया होता है तो कार्डिेएक लोड बढ़ जाता है। इसका असर किडनी पर भी पड़ता है। जब किडनी पर दबाव बढ़ता है तो दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। ऐसे में मल्टी ऑर्गन फेल होने का भी रिस्क बढ़ जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जताई है खसरे पर चिंता
खसरे को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी चिंता जताई है। पूरी दुनिया में 2021 में 90 लाख से अधिक खसरे के मरीज मिले जिसमें 1.28 लाख की मौत हो गई।
WHO के अनुसार, 2021 में पूरी दुनिया में 4 करोड़ बच्चों को मीजल्स की वैक्सीन नहीं लगी। इनमें से 2.5 करोड़ बच्चों को वैक्सीन की पहली डोज भी नहीं दी गई। मीजल्स की चपेट में आने का बड़ा कारण वैक्सीन नहीं लगना है। भारत में बच्चों को मीजल्स की तीन डोज लगती हैं। पहली डोज 9 से 12 महीने में, दूसरी डोज 15 से 18 महीने और तीसरी व आखिरी डोज 4 से 6 साल की उम्र में दी जाती है।
केंद्र ने राज्यों को खसरा वैक्सीनेशन के दिए निर्देश
कोरोना की वजह से मीजल्स की डोज देने में देरी हुई है। अब मीजल्स के बढ़ते केस को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने गाइडलाइंस जारी की हैं। गाइडलाइंस में एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने या मास्क लगाने को लेकर अभी कोई निर्देश नहीं दिया गया है, जिन राज्यों में वैक्सीनेशन में देरी हुई है उन्हें टारगेट पूरे करने के निर्देश दिए गए हैं।