मध्यप्रदेश के 4,700 अतिथि विद्वानों की खतरे में नौकरी,नियमितीकरण के नाम पर निराशा
मध्यप्रदेश के 4700 अतिथि विद्वान नियमितीकरण के वादों के बाद भी नौकरी और वेतन की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं, जून 2025 में आंदोलन की चेतावनी।

मध्यप्रदेश के करीब 4700 अतिथि विद्वान, जो राज्य के विभिन्न महाविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं, अपनी नौकरी और भविष्य को लेकर गंभीर संकट में हैं। सरकार ने नियमितीकरण और बेहतर वेतन देने का वादा किया था, लेकिन अब अचानक से उनकी सेवाएं खत्म करने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस स्थिति ने शिक्षा जगत में चिंता और विरोध दोनों को जन्म दिया है।
वादों से हकीकत तक का सफर
2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों के लिए बड़े वादे किए थे। उन्होंने कहा था कि विद्वानों को 1500 रुपये प्रति कार्यदिवस की जगह 50,000 रुपये फिक्स वेतन मिलेगा, उनकी नौकरी स्थायी होगी और सरकारी कर्मचारियों जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। साथ ही, सेवा से बाहर किए गए विद्वानों को पुनः नौकरी पर लिया जाएगा।
लेकिन अब, कई कॉलेजों में प्राचार्यों के आदेश से अतिथि विद्वानों की सेवाएं बंद की जा रही हैं। नए प्रोफेसरों की नियुक्ति, पीएससी के माध्यम से नियमित भर्ती और पदों पर स्थायी नियुक्ति की वजह से विद्वानों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है।
संघर्ष मोर्चा का आंदोलन का ऐलान
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा ने जून 2025 में सरकार से मांगों पर कार्रवाई न होने पर व्यापक आंदोलन करने की चेतावनी दी है। मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने बताया कि ये विद्वान उच्च शिक्षित हैं और वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत का फल उन्हें नहीं मिल रहा।
उम्र और अनुभव के बीच दुविधा
अतिथि विद्वानों की उम्र लगभग 45 से 55 वर्ष के बीच है, और इनमें से कई के पास 20 से 25 साल का अनुभव है। जबकि सरकार युवा पीढ़ी के लिए नई भर्ती कर रही है, इस बीच अनुभवी विद्वानों की नौकरी अस्थिर होती जा रही है। यह स्थिति उनकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा दोनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
अन्य राज्यों की मिसाल
हरियाणा जैसे राज्यों ने अतिथि विद्वानों को नियमित करने का निर्णय लिया है और उन्हें यूजीसी के वेतनमान पर भुगतान करना शुरू कर दिया है। मध्यप्रदेश में भी विद्वान संघ ऐसे कदमों की मांग कर रहा है ताकि शिक्षा के इस अहम स्तंभ को मजबूत किया जा सके और विद्वानों का भविष्य सुरक्षित हो।
यह मामला सिर्फ नौकरी का संघर्ष नहीं, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में स्थिरता और गुणवत्ता बनाए रखने की लड़ाई है। अतिथि विद्वानों की सुरक्षा और सम्मान पर गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है, तभी प्रदेश के शिक्षा तंत्र का भविष्य उज्जवल बन सकता है।