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MP के रीवा में मां कालिका का 500 साल पुराना चमत्कारिक मंदिर, दुखो का होता है नाश,जानिए कहा है मंदिर

(Rewa) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक करीब 500 साल पुराना प्राचीन मंदिर है. जिसको बहुत ही चमत्कारी माना जाता है.यहां तक कि नवरात्रि में लाखों भक्त यहां पर मां के दर्शन करने आते हैं. बता दें कि रीवा का सबसे पुराना तालाब शहर के दक्षिण में स्थित है. इसे पवित्र माना जाता है और इसके दक्षिण में काली देवी का मंदिर भी है. यह राज्य के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. नवरात्रि और दिवाली के दौरान मंदिर में भव्य पूजा और मेले आयोजित किए जाते हैं. त्योहार के दौरान यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है. वैसे तो यहां साल भर लोग घूमने आते हैं. बता दें कि यह रीवा का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है.

MP के रीवा में मां कालिका का 500 साल पुराना चमत्कारिक मंदिर, दुखो का होता है नाश,जानिए कहा है मंदिर
मां कालिका देवी तस्वीर

मध्य प्रदेश के रीवा शहर के रानी तालाब में माता कालिका का दरबार है. जहां हर वर्ष की चैत्र नवरात्रि के अवसर पर आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का सैलाब उमड़ता है. नवरात्रि के समय सुबह से देर शाम तक भक्तों के पहुंचने का सिलसिला लगातार जारी रहता है और भक्त 9 दिनों तक मां की विशेष पूजा-अर्चना करते है. दरअसल, आज हम आपको मां कालिका के चमत्कारों और रानी तालाब वाली मां के महत्व के बारे में बताएंगे. रानी तालाब स्थित मां कालिका देवी के मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का सैलाब उमड़ता है. इस 450 वर्ष पुराने माता कलिका देवी मंदिर में नौ दिनों तक सिद्धि के लिए आराधना होती है. मान्यता है कि ज्योतिष गणना पर आधारित इस सिद्धिपीठ में नवरात्र की आराधना से लोगों को सिद्धि प्राप्त होती है. जिसके लिए यहां लोग पूजा अर्चना दिन-रात करते हैं.

MP के रीवा में मां कालिका का 500 साल पुराना चमत्कारिक मंदिर, दुखो का होता है नाश,जानिए कहा है मंदिर
मां कालिका देवी मंदिर रीवा

रानी तालाब के मेढ़ पर स्थित मां कालका के मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. मंदिर में गुलाबी पत्थरों और गोल्डन एवं चांदी रंग के प्लेट पर की गई नक्कासी जहां उसकी सुन्दरता और भव्यता अपनी ओर खीचती है तो वहीं रानी तालाब का हवा के बीच लहराता पानी पहुंचने वाले भक्तों को काफी सुकून देता है. जो पर्यटकों का मन मोह लेता है.

कैसे हुई मां कालिका की स्थापना?

मां कालिका की स्थापना को लेकर बताया जाता है कि तकरीबन 450 वर्ष पूर्व यहां से गुजर रहे व्यापारियों के पास यह देवी मूर्ति थी. घने जंगल और रात्रि विश्राम के समय व्यापारियों ने मां की प्रतिमा को एक इमली के पेड़ पर टीकाकर रात्रि विश्राम किया. दूसरे दिन इसे उठाना चाहा तो मूर्ति नहीं उठी. कई कोशिशों के बाद मूर्ति नहीं उठी तो व्यापारियों ने इस मूर्ति को यही छोड़ आगे बढ़ गए तब से यह मूर्ति यही है. जिसके बाद से वहीं पर मां कालिका की पूजा अर्चना स्थानीय लोग करने लगे जो अब तक लगातार जारी है.

बताते हैं कि बघेल (baghel) साम्राज्य के शासन काल में (Rewa) रीवा रियासत के राजा व्याघ्रदेव सिंह की जानकारी में यह बात सामने आई थी तो उन्होंने इस स्थान पर एक चबूतरा बनवाकर इस भव्य मूर्ति की स्थापना की और नियमित रूप से यहां पूजा पाठ की शुरुआत हुई. जो सैकड़ों वर्षों से यहां पर आस्था और भक्ति जारी है. माता कालिका का नवरात्रि में दो दिनों तक आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है. एक घटना यह भी बताई जाती है कि लगभग 70 से 80 वर्ष पूर्व मंदिर में मां के पहने आभूषण को चोरों ने ले जाने का प्रयास किया था. हालांकि जैसे ही वो मंदिर के बाहर जाने लगे उनकी आंखों में पर्दा आ गया और उन्हे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. जिसके चलते वे मंदिर से बाहर नहीं जा सकें, सुबह पुजारी के आने पर आभूषणों से वापस श्रृंगार किया गया और चोरों ने माफी मांगी. जिसके बाद ही वे मंदिर से बाहर जा सकें. नवरात्रि और नवदुर्गा पूजा के समय सुरक्षा गार्डो की देख-रेख में मां की स्वर्ण आभूषणों से साज-सज्जा होती है.

क्या कहते है? विषसेज्ञ

जानकर बताते हैं कि तालाब की खुदाई का काम लगवाने विशेष समुदाए के लोगों ने किया था. जिससे लोगों को पानी की समस्या न हो और वे इस तालाब के पानी का उपयोग कर सकें. उक्त तालाब निर्माण की भव्यता को देखकर रीवा की महारानी कुंदन कुंवरि जो जोधपुर घराने से थीं, जो की रीवा राजघराने में ब्याही थीं. वहीं लवाने समुदाय के लोगों को इसके बदले में राखी भी बांधी थी. यही वजह है कि इस तालाब का नाम रानी तालाब रखा गया था. इसके बाद इसका नाम रानी तालाब के नाम से जाने जाने लगा. बता दें कि रानी तालाब के बीच में भव्य शिवजी का मंदिर है. कहा जाता है कि जहां देवी की जाग्रत देवी मूर्ति होगी वहां जलाशय और वट वृक्ष नीम और पीपल के वृक्ष जरूर होंगे. वहीं ज्योतिष गणना के अनुसार यहां उत्तर में हनुमान जी और शंकर जी, उत्तर पूर्व के कोने में शिवलिंग, दक्षिण में गणेश जी, पूर्व में काल भैरव हैं. इसलिए इस स्थान को सिद्धिपीठ का दर्जा मिला 

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