आस्था को मिलेगा सम्मान: अब आदिवासी पूजा स्थलों से कोई नहीं हटाएगा

मध्यप्रदेश सरकार की यह पहल न सिर्फ आदिवासियों की धार्मिक आस्था को सम्मान देने वाली है

मध्यप्रदेश सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है जिससे राज्य के आदिवासी समुदाय को राहत मिलेगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्पष्ट किया है कि वन क्षेत्रों में वर्षों से पूजा कर रहे आदिवासियों को अब कोई नहीं हटाएगा। इसके उलट, सरकार इन पूजा स्थलों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएगी। यदि इसके लिए नियमों में बदलाव की आवश्यकता पड़ी तो वह भी किया जाएगा।

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मुख्यमंत्री ने यह बात वन विभाग की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान कही। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की पूजा पद्धति उनकी आस्था से जुड़ी है। अगर वे वन क्षेत्रों में जाकर पूजा करते हैं, वहाँ के पेड़ों और स्थलों को पवित्र मानकर संरक्षित करते हैं और थोड़ा-बहुत निर्माण कार्य करते हैं, तो यह गलत नहीं है।

कार्यशाला में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की उपस्थिति में मुख्यमंत्री ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम वनों के प्रबंधन में औपनिवेशिक सोच को पीछे छोड़ें और प्रकृति तथा विकास के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ें। पेसा एक्ट को इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सर्पदंश की घटनाओं में कमी लाने के लिए किंग कोबरा समेत अन्य सरीसृपों के संरक्षण हेतु विशेष व्यवस्था की जरूरत है।

प्राकृतिक संरक्षण और प्लास्टिक पर चिंता

कार्यशाला में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि प्रकृति जो कुछ भी उत्पन्न करती है, वह हमारे लिए बोझ नहीं है, लेकिन इंसानों द्वारा बनाया गया बहुत कुछ पर्यावरण के लिए हानिकारक है। उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और समुदाय आधारित योजनाओं को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया।

जनजातीय समुदाय की चुनौतियों पर भी चर्चा

केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने कहा कि मिश्रित वनों के क्षरण के कारण आदिवासी समुदायों को पलायन करना पड़ रहा है, जिस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

विचारक गिरीश कुबेर ने कहा कि वन और वनवासियों का हित एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। वहीं राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने समुदाय आधारित वन पुनर्स्थापना और जलवायु अनुकूल आजीविका को वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बताया।

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